भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
गीत

गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।

Articles Under this Category

पथ की बाधाओं के आगे | गीत - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar

पथ की बाधाओं के आगे घुटने टेक दिए
अभी तो आधा पथ चले!
तुम्हें नाव से कहीं अधिक था बाहों पर विश्वास,
क्यों जल के बुलबुले देखकर गति हो गई उदास,
ज्वार मिलेंगे बड़े भंयकर कुछ आगे चलकर--
अभी तो तट के तले तले!
सीमाओं से बाँध नहीं पाता कोई मन को,
सभी दिशाओं में मुड़ना पड़ता है जीवन को,
हो सकता है रेखाओं पर चलना तुम्हें पड़े
अभी तो गलियों से निकले!
शीश पटकने से कम दुख का भार नहीं होगा,
आँसू से पीड़ा का उपसंहार नहीं होगा,
संभव है यौवन ही पानी बनकर बह जाए
अभी तो नयन-नयन पिघले!
...

आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई? | गीत - उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk

आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई?
...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश