जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
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खुसरो की बूझ पहेली - भारत-दर्शन संकलन

बूझ पहेली (अंतर्लापिका)
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अगली सदी का शोधपत्र - सूर्यबाला | Suryabala

एक समय की बात है, हिन्दुस्तान में एक भाषा हुआ करे थी। उसका नाम था हिंदी। हिन्दुस्तान के लोग उस भाषा को दिलोजान से प्यार करते थे। बहुत सँभालकर रखते थे। कभी भूलकर भी उसका इस्तेमाल बोलचाल या लिखने-पढ़ने में नहीं करते थे। सिर्फ कुछ विशेष अवसरों पर ही वह लिखी-पढ़ी या बोली जाती थी। यहाँ तक कि साल में एक दिन, हफ्ता या पखवारा तय कर दिया जाता था। अपनी-अपनी फुरसत के हिसाब से और सबको खबर कर दी जाती थी कि इस दिन इतने बजकर इतने मिनट पर हिंदी पढ़ी-बोली और सुनी-समझी (?) जाएगी। निश्चित दिन, निश्चित समय पर बड़े सम्मान से हिंदी झाड़-पोंछकर तहखाने से निकाली जाती थी और सबको बोलकर सुनाई जाती थी।
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न्यूज़ीलैंड में उपनगर और स्थलों के भारतीय नाम  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

'वैलिंगटन के नागरिक और आगंतुक न्यूयॉर्क शहर की तुलना में प्रति व्यक्ति अधिक कैफे, बार और रेस्तरां का आनंद उठाते हैं। 2017 के वैलिंगटन सिटी काउंसिल के आंकड़े पुष्टि करते हैं कि शहर में लगभग 200,000 निवासियों के लिए 850 रेस्तरां, बार और कैफे हैं यानि प्रत्येक 240 लोगों के लिए एक। न्यूयॉर्क शहर में प्रति व्यक्ति दर 340 है।‘ यह तथ्य शायद आप जानते हों लेकिन वैलिंगटन के कई स्थानों के नाम आपको हतप्रभ कर देंगे। राजधानी वैलिंगटन का एक उपनगर है खंडाला। इस उपनगर की गलियों के नाम देखिए - दिल्ली क्रेसेंट, शिमला क्रेसेंट, आगरा क्रेसेंट, मद्रास स्ट्रीट, अमृतसर स्ट्रीट, पूना स्ट्रीट, गोरखा क्रेसेंट, बॉम्बे स्ट्रीट, गंगा रोड, कश्मीरी एवेन्यू, कलकत्ता स्ट्रीट और मांडले टेरेस। यहाँ तक कि आपको ‘गावस्कर प्लेस' भी देखने को मिल जाएगा।
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‘हम कौन थे, क्या हो गए---!’ - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

किसी समय हिंदी पत्रकारिता आदर्श और नैतिक मूल्यों से बंधी हुई थी। पत्रकारिता को व्यवसाय नहीं, ‘धर्म' समझा जाता था। कभी इस देश में महावीर प्रसाद द्विवेदी, गणेशशंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, महात्मा गांधी, प्रेमचंद और बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन' जैसे लोग पत्रकारिता से जुड़े हुए थे। प्रभाष जोशी सरीखे पत्रकार तो अभी हाल ही तक पत्रकारिता का धर्म निभाते रहे हैं। कई पत्रकारों के सम्मान में कवियों ने यहाँ तक लिखा है--
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हिंदी में आगत शब्दों के लिप्यंतरण के मानकीकरण की आवश्यकता - विजय कुमार मल्‍होत्रा

इसमें संदेह नहीं कि आज हिंदी पत्रकारिता का क्षेत्र बहुत व्यापक होता जा रहा है, मुद्रण से लेकर टी.वी. चैनल और इंटरनैट तक मीडिया के सभी स्वरूपों में नये-नये प्रयोग किये जा रहे हैं। टी.वी. चैनल के मौखिक स्वरूप में हिंदी के साथ अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग बहुत सहज लगता है, क्योंकि मौखिक बोलचाल में आज हम हिंदी के बजाय हिंगलिश के प्रयोग के आदी होते जा रहे हैं, लेकिन जब वही बात अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में मुद्रित रूप में सामने आती हैं तो कई प्रश्न उठ खड़े होते हैं। अर्थ का अनर्थ होने के खतरे भी सामने आ जाते हैं। ध्वन्यात्मक होने की विशेषता के कारण हम जो भी लिखते हैं, उसी रूप में उसे पढ़ने की अपेक्षा की जाती है। इसी विशेषता के कारण देवनागरी लिपि को अत्यंत वैज्ञानिक माना जाता है। उदाहरण के लिए taste और test दो शब्द हैं। अंग्रेज़ी के इन शब्दों को सीखते समय हम इनकी वर्तनी को ज्यों का त्यों याद कर लेते हैं। इतना ही नहीं put और but के मूलभूत अंतर को भी वर्तनी के माध्यम से ही याद कर लेते हैं। Calf, half और psychology में l और p जैसे silent शब्दों की भी यही स्थिति है। कुछ विद्वान् तो अब हिंदी के लिए रोमन लिपि की भी वकालत भी करने लगे हैं। ऐसी स्थिति में अंग्रेज़ी के आगत शब्दों के हिंदी में लिप्यंतरण पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
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अमरीका में हिंदी : एक सिंहावलोकन - सुषम बेदी

जब से अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने (जनवरी 2006) यह घोषणा की है कि अरबी, हिंदी, उर्दू जैसी भाषाओं के लिए अमरीकी शिक्षा में विशेष बल दिया जाएगा और इन भाषाओं के लिए अलग से धन भी आरक्षित किया गया तो यह समाचार सारे संसार में आग की तरह फैल गया था। यहाँ तक कि फरवरी 2007 को भी डिस्कवर लैंग्वेजेस महीना घोषित किया गया। अमरीकी कौंसिल आन द टीचिंग आफ फारन लैंग्वेजेस नामक भाषा शिक्षण से जुड़ी संस्था ने विशेष रूप से राष्ट्रपति बुश के संदेश को प्रसारित करते हुए बताया है कि देश भर में कई तरह से स्कूलों और कालेजों के प्राध्यापक भाषाओं के वैविध्य को मना रहे हैं। सच तो यह है कि दुनिया को चाहे अब जा के पता चला हो कि इन भाषाओं को पढ़ाया जाएगा, इस दिशा में काम तो बहुत पहले से ही हो रहा था।
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जापान का हिंदी संसार - सुषम बेदी - सुषम बेदी

जैसा कि कुछ सालों से इधर जगह-जगह विदेशों में हिंदी के कार्यक्रम शुरू हो रहे हैं उसी तरह से जापान में भी पिछले दस-बीस साल से हिंदी पढ़ाई जा रही होगी, मैंने यही सोचा था जबकि सुरेश रितुपर्ण ने टोकियो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरन स्टडीज़ की ओर से विश्व हिंदी सम्मेलन का आमंत्रण भेजा। वहाँ पहुंचने के बाद मेरे लिए यह सचमुच बहुत सुखद आश्चर्य का विषय था कि दरअसल जापान में हिंदी पढ़ाने का कार्यक्रम 100 साल से भी अधिक पुराना है और वहां सन 1908 से हिंदी पढ़ाई जा रही है। आखिर हम भूल कैसे सकते हैं कि जापान के साथ भारत के सम्बन्ध उस समय से चले आ रहे हैं जब छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म का वहां आगमन हुआ। यह जरूर है कि सीधे भारत से न आकर यह धर्म चीन और कोरिया के ज़रिये यहां आया। इस विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी भी बहुत सम्पन्न है। वहां लगभग 60-70 हजार के क़रीब हिंदी की पुस्तकें और पत्रिकाएँ हैं।
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हिंदी वेब मीडिया | Web Hindi Journalism - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

क्या आप जानते हैं - वेब पर हिन्दी प्रकाशन और पत्रकारिता का आरंभ कब और कहाँ से हुआ? इंटरनेट पर हिंदी का पहला प्रकाशन कौनसा था? 
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हिंदी साहित्य में स्त्री आत्मकथा लेखन विधा का विकास  - भारत-दर्शन संकलन

हिंदी में अन्य गद्य विधाओं की भाँति आत्मकथा विधा का आगमन भी पश्चिम से हुआ। बाद में यह हिंदी साहित्य में प्रमुख विधा बन गई। नामवर सिंह ने अपने एक व्याख्यान में कहा था कि ‘अपना लेने पर कोई चीज परायी नहीं रह जाती, बल्कि अपनी हो जाती है।' हिंदी आत्मकथाकारों ने भी इस विधा को आत्मसात कर लिया और आत्मकथा हिंदी की एक विधा के रूप में विकसित हुई।
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हिंदी के बारे में कुछ तथ्य - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड
  • सरहपाद को अपभ्रंश का पहला आदि कवि कहा जा सकता है। खुसरो से कहीं पहले सरहपाद का अस्तित्व सामने आता है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार अपभ्रंश की पहली कृति 'सरह के दोहों' के रूप में उपलब्ध है। [ राहुल सांकृत्यायन कृत दोहा-कोश से]
  • 1283 खुसरो की पहेली व मुकरी प्रकाश में आईं जो आज भी प्रचलित हैं।
  • हिंदी की पहली ग़ज़ल संभवत: कबीर की ग़ज़ल है।
  • 1805 में लल्लू लाल की हिंदी पुस्तक 'प्रेम सागर' फोर्ट विलियम कॉलेज, कोलकाता के लिए पहली हिंदी प्रकाशित पुस्तक थी।
  • हिन्दी का पहला साप्ताहिक समाचारपत्र उदन्त मार्तण्ड पं जुगलकिशोर शुक्ल के संपादन में मई 1826 में कोलकाता से आरम्भ हुआ था।
  • पं० जामनराव पेठे को राष्ट्रभाषा का प्रस्ताव उठाने वाला पहला व्यक्ति कहा जाता है। उन्होंने सबसे पहले भारत की कोई राष्ट्रभाषा हो के मुद्दे को उठाया। 'भारतमित्र' का इस विषय में मतभेद था। 'भारतमित्र' ने 'बंकिम बाबू' को इसका श्रेय दिया है।
  • 1833 में गुजराती कवि नर्मद ने भारत की राष्‍ट्रभाषा के रूप में हिंदी का नाम प्रस्तावित किया ।
  • 1877 में श्रद्धाराम फुल्लौरी ने 'भाग्यवती' नामक उपन्यास रचा। फल्लौरी 'औम जय जगदीश हरे' आरती के भी रचयिता हैं।
  • 1893 में बनारस (वाराणसी) में नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना हुई ।
  • 1900 में द्विवेदी युग का आरंभ हुआ जिसमें राष्ट्र-धारा का साहित्य सामने आया।
  • 1918 में गाँधी जी ने 'दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा' की स्थापना की ।
  • 1929 में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के 'हिंदी साहित्य का इतिहास' का प्रकाशन हुआ ।
  • 1931 में हिंदी की पहली बोलती फिल्म "आलम आरा" पर्दे पर आई।
  • 1996-97 में न्यूजीलैंड से प्रकाशित हिंदी पत्रिका 'भारत-दर्शन' इंटरनेट पर विश्व का पहला हिंदी प्रकाशन है। 

        संकलन: रोहित कुमार 'हैप्पी'
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हिन्दी के बिना हमारा कार्य नहीं चल सकता - भारत-दर्शन संकलन

अंग्रेजी के विषय में लोगों की जो कुछ भी भावना हो, पर मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि हिन्दी के बिना हमारा कार्य नहीं चल सकता । हिन्दी की पुस्तकें लिख कर और हिन्दी बोल कर भारत के अधिकाँश भाग को निश्चय ही लाभ हो सकता है। यदि हम देश में बंगला और अंग्रेजी जाननेवालों की संख्या का पता चलाएँ, तो हमें साफ प्रकट हो जाएगा कि वह कितनी न्यून है। जो सज्जन हिन्दी भाषा द्वारा भारत में एकता पैदा करना चाहते हैं, वे निश्चय ही भारतबन्धु हैं । हम सब को संगठित हो कर इस ध्येय की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए । भले ही इस को पाने में अधिक समय लगे, परन्तु हमें सफलता अवश्य मिलेगी ।
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हिंदी दिवस बारम्बार पूछे जाने वाले प्रश्न | Hindi Diwas FAQ - रोहित कुमार 'हैप्पी'

हिंदी दिवस बारम्बार पूछे जाने वाले प्रश्न  (Hindi Diwas FAQ)
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हिंदी और राष्ट्रीय एकता - सुभाषचन्द्र बोस

यह काम बड़ा दूरदर्शितापूर्ण है और इसका परिणाम बहुत दूर आगे चल कर निकलेगा। प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेश को दूर करने में जितनी सहायता हमें हिंदी-प्रचार से मिलेगी, उतनी दूसरी किसी चीज़ से नहीं मिल सकती। अपनी प्रांतीय भाषाओं की भरपूर उन्नति कीजिए। उसमें कोई बाधा नहीं डालना चाहता और न हम किसी की बाधा को सहन ही कर सकते हैं; पर सारे प्रांतो की सार्वजनिक भाषा का पद हिंदी या हिंदुस्तानी ही को मिला। नेहरू-रिपोर्ट में भी इसी की सिफारिश की गई है। यदि हम लोगों ने तन मन से प्रयत्न किया, तो वह दिन दूर नहीं है, जब भारत स्वाधीन होगा और उसकी राष्ट्रभाषा होगी हिंदी।
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बीरबल की पहेलियाँ - भारत-दर्शन संकलन

बीरबल के नाम से भी कुछ पहेलियाँ  प्रसिद्ध है।
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अद्भुत संवाद - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra

"ए, जरा हमारा घोड़ा तो पकड़े रहो।"
"यह कूदेगा तो नहीं?"
"कूदेगा! भला कूदेगा क्यों? लो संभालो। "
"यह काटता है?"
"नहीं काटेगा, लगाम पकड़े रहो।"
"क्या इसे दो आदमी पकड़ते हैं तब सम्हलता है?"
"नहीं !"
"फिर हमें क्यों तकलीफ देते हैं? आप तो हई हैं।"
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हिंदी भाषा ही सर्वत्र प्रचलित है - श्री केशवचन्द्र सेन

यदि एक भाषा के न होने के कारण भारत में एकता नहीं होती है, तो और चारा ही क्या है? तब सारे भारतवर्ष में एक ही भाषा का व्यवहार करना ही एकमात्र उपाय है । अभी कितनी ही भाषाएँ भारत में प्रचलित हैं । उनमें हिन्दी भाषा ही सर्वत्र प्रचलित है । इसी हिन्दी को भारत वर्ष की एक मात्र भाषा स्वीकार कर लिया जाए, तो सहज ही में यह एकता सम्पन्न हो सकती है । किन्तु राज्य की सहायता के बिना यह कभी भी संभव नहीं है । अभी अंग्रेज हमारे राजा हैं, वे इस प्रस्ताव से सहमत होंगे, ऐसा विश्वास नहीं होता । भारतवासियों के बीच फिर फूट नहीं रहेगी वे परस्पर एक हृदय हो जायेंगे, आदि सोच कर शायद अंग्रेजों के मन में भय होगा । उनका खयाल है कि भारतीयों में फूट न होने पर ब्रिटिश साम्राज्य भी स्थिर नहीं रह सकेगा ।
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हिंदी भाषा की समृद्धता  - भारतेन्दु हरिशचन्द्र

यदि हिन्दी अदालती भाषा हो जाए, तो सम्मन पढ़वाने, के लिए दो-चार आने कौन देगा, और साधारण-सी अर्जी लिखवाने के) लिए कोई रुपया-आठ आने क्यों देगा । तब पढ़ने वालों को यह अवसर कहाँ मिलेगा कि गवाही के सम्मन को गिरफ्तारी का वारंट बता दें ।
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हिन्दी, भारत की सामान्य भाषा - लोकमान्य तिलक

राष्ट्रभाषा की आवश्यकता अब सर्वत्र समझी जाने लगी है । राष्ट्र के संगठन के लिये आज ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जिसे सर्वत्र समझा जा सके । लोगों में अपने विचारों का अच्छी तरह प्रचार करने के लिये भगवान बुद्ध ने भी एक भाषा को प्रधानता देकर कार्य किया था । हिन्दी भाषा राष्ट्र भाषा बन सकती है । राष्ट्र भाषा सर्वसाधारण के लिये जरूर होनी चाहिए । मनुष्य-हृदय एक दूसरे से विचार-विनिमय करना चाहता है; इसलिये राष्ट्र भाषा की बहुत जरूरत है । विद्यालयों में हिन्दी की पुस्तकों का प्रचार होना चाहिये । इस प्रकार यह कुछ ही वर्षों में राष्ट्र भापा बन सकती है ।
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हिन्दी भाषा का भविष्य  - गणेशशंकर विद्यार्थी | Ganesh Shankar Vidyarthi

[ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के गोरखपुर अधिवेशन में अध्यक्ष पद से दिये हुए भाषण का कुछ अंश ]
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उच्चायुक्त मुक्तेश परदेशी से साक्षात्कार - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

उच्चायुक्त मुक्तेश परदेशी
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हिंदी दिवस और विश्व हिंदी दिवस  - रोहित कुमार 'हैप्पी'

हिंदी दिवस और विश्व हिंदी दिवस दो अलग-अलग आयोजन हैं। दोनों का इतिहास और पृष्ठभूमि भी पृथक है।  आइए, हिंदी दिवस और विश्व हिंदी दिवस के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करें। 
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हरिद्वार यात्रा - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra

श्रीमान क.व.सु. संपादक महोदयेषु!
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