भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।

पुरखों की पुण्य धरोहर

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

जो फूल चमन पर संकट देख रहा सोता
मिट्टी उस को जीवन-भर क्षमा नहीं करती ।

थोड़ा-सा अंधियारा भी उसको काफी है
जो दीप विभाजित मन से शस्त्र उठाता है
जिनके घर मतभेदों पर सुमन नहीं चढ़ते
अंधड उनके आगे आते घबराता है ।
तूफान देख जिसने दरवाजे बंद किए
आधी उसके घर आते हुए नहीं डरती ।

करना चाहे इंसान मगर वह हो न सके
इतना मुश्किल कोई भी काम नहीं होता,
जब तक पतझर अपने घर लौट नहीं जाते
चौकस रहना तब तक विश्राम नहीं होता ।
जो दुष्ट बवंडर को ललकार नहीं सकता
उसकी नौका धारा के पार नहीं तरती ।

दुनिया में कोई अधिक देश से बड़ा नहीं,
धरती पुरखों की पुण्य धरोहर होती है
रहता हो चाहे कहीं नहीं अंतर आता
हर व्यक्ति उसी माला का सच्चा मोती है ।
जो काम देश के आया नहीं मुसीबत में
कहते भी पुत्र उसे शरमाती है धरती ।

- रामावतार त्यागी

 

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश