अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

बन जाती हूं

 (बाल-साहित्य ) 
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रचनाकार:

 दिविक रमेश

चींचीं चींचीं
कर के तो मैं
चिड़िया तो नहीं
बन जाती हूं।

चूंचूं चूंचूं
करके तो मैं
चूहा तो नहीं
बन जाती हूं।

मेंमें मेंमें
करके तो मैं
बकरी तो नहीं
बन जाती हूं।

पर सीख कर
अच्छी बातें
अच्छी लड़की
बन जाती हूं।

-दिविक रमेश

 

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