जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

गालियां

 (कथा-कहानी) 
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रचनाकार:

 चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri

एक गांव में बारात जीमने बैठी । उस समय स्त्रियां समधियों को गालियां गाती हैं, पर गालियां न गाई जाती देख नागरिक सुधारक बाराती को बड़ा हर्ष हुआ । वहग्राम के एक वृद्ध से कह बैठा, "बड़ी खुशी की बात है कि आपके यहाँ इतनीतरक्की हो गई है।"

बुड्डा बोला, "हाँ साहब, तरक्की हो रही है । पहले गलियों में कहा जाता था.. फलाने की फलानी के साथ और अमुक की अमुक के साथ.. लोग-लुगाई सुनते थे, हँस देते थे । अब घर-घर में वे ही बातें सच्ची हो रही हैं । अब गालियां गाई जाती हैं तो चोरों की दाढ़ी में तिनके निकलते हैं । तभी तो आंदोलन होते हैं कि गालियां बंद करो, क्योंकि वे चुभती हैं ।"

-गुलेरी

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Posted By ulhas patil   on Tuesday, 24-Nov-2015-05:57
good
 
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