अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

पांचवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो

 (विविध) 
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रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

पांचवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन (04-08 अप्रैल, 1996)
ट्रिनिडाड एवं टोबेगो

पांचवें विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित मंतव्य

यह सम्मेलन भारतवंशी समाज एवं हिंदी के बीच जीवंत समीकरण बनाने का प्रबल समर्थन करता है और यह आशा करता है कि विश्वव्यापी भारतवंशी समाज हिंदी को अपनी संपर्क भाषा के रूप में स्थापित करेगा एवं एक विश्व हिंदी मंच बनाने में सहायता करेगा।

सम्मेलन चिरकाल से अभिव्यक्त अपने मंतव्य की पुनः पुष्टि करता है कि विश्व हिंदी सम्मेलन को स्थाई सचिवालय की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। सम्मेलन के विगत मंतव्य के अनुसार यह सचिवालय मॉरिशस में स्थापित होना निर्णित है। इसके त्वरित कार्यान्वयन के लिए एक अंतर सरकारी समिति का गठन किया जाए। इस समिति का गठन मॉरीशस एवं भारत सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। इस समिति में सरकारी प्रतिनिधियों के अलावा पर्याप्त संख्या में हिंदी के प्रति निष्ठावान साहित्यकारों को सम्मिलित किया जाए। यह समिति अन्य बातों के साथ-साथ सचिवालयी व्यवस्था के अनेकानेक पहलुओं पर विचार करते हुए एक सर्वांगीण कार्यक्रम योजना भारत तथा मॉरीशस की सरकारों को प्रस्तुत करेगी।

यह सम्मेलन सभी देशों, विशेषकर उन देशों जहां भारतीय मूल के लोग तथा आप्रवासी भारतीय बसते हैं, की सरकारों से आग्रह करता है कि वे अपने देश में विभिन्न स्तरों पर हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था करें।

यह सम्मेलन विश्व स्तर पर हिंदी भाषा को प्राप्त जनाधार और उसके प्रति जनभावना को देखते हुए सभी देशों, जहां भारतीय मूल तथाआप्रवासी भारतीय बसते हैं, में हिंदी के प्रचार-प्रसार में संलग्न स्वयं सेवी संस्थाओं/ हिंदी विद्वानों से आग्रह करता है कि वे अपनी-अपनी सरकारों से आग्रह करें कि वे हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने के लिए राजनयिक योगदान तथा समर्थन दें।

यह सम्मेलन भारत सरकार द्वारा महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय स्थापित करने के निर्णय का स्वागत करता है और आशा करता है कि इस विश्व विद्यालय की स्थापना से हिंदी को विश्वव्यापी बल मिलेगा।

 

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