अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

सूरज दादा कहाँ गए तुम

 (बाल-साहित्य ) 
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रचनाकार:

 आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

सूरज  दादा  कहाँ   गए  तुम,

काहे ईद  का  चाँद  भए तुम।


घना
   अँधेरा,  काला - काला,

दिन निकला पर नहीं उजाला।

कोहरे   ने  कोहराम  मचाया,

पारा  गिर  कर  नीचे  आया।

काले  बादल   जिया   डराते,

हॉरर-शो  सा  दृश्य  दिखाते।

बर्षा  रानी   आँख   दिखाती,

झम झम झम पानी बरसाती।

 

काले - काले    बादल   आते,

उमड़-घुमड़  कर शोर मचाते।

नन्हीं - नन्हीं  बूँद  कभी  तो,

कभी ज़ोर  की  बारिश लाते।


सर्द
  हवाऐं,  शीत  लहर  है,

बे-मौसम  बरसात, कहर  है।


*टच मी नॉट* कहे  अब पानी,

*बाहर ना जा* कहती  नानी।


कट - कट दाँत
  बजाते बाजा,

मौसम  अपना  बैण्ड बजाता।


सड़क,  गली,  कूँचे,  चौबारे,

सब   सूने  हैं   ठंड  के  मारे।

फुट - पाथी,   बेघर,  बेचारे,

इन सबके  तो  तुम्हीं  सहारे।


अब तो  सुन लो, सूरज दादा,

कल  आने  का  दे  दो  वादा।

- आनन्द विश्वास

 

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