देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।

होली व फाग के दोहे

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

भर दीजे गर हो सके, जीवन अंदर रंग।
वरना तो बेकार है, होली का हुड़दंग॥

#

सबको कर काहे रहे, तुम होली में तंग।
घोट-घोट के पी रहे, देखो कैसे भंग ॥

#

मिलकर सब करने लगे, होली पर हुड़दंग।
कोई फगुआ गा रहा, कोई घोटे भंग॥

#

अभी तलक छोड़ी नहीं, दिल से उसने जंग।
यूं होली को आ गया, मुख पर मलने रंग ॥

#

अपना गुस्सा छोड़िए, आओ खेलें संग ।
देखो अंबर में उड़े, हैं होली के रंग ॥

#

बिन तेरे लगता हमें, जीवन ये बेरंग।
चाहे पिचकारी चले, चाहे उड़ते रंग ॥

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें