अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

दिल पे मुश्किल है....

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 कुँअर बेचैन

दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना
जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना

कोई उलझन ही रही होगी जो वो भूल गया
मेरे हिस्से में कोई शाम सुहानी लिखना

आते जाते हुए मौसम से अलग रह के ज़रा
अब के ख़त में तो कोई बात पुरानी लिखना

कुछ भी लिखने का हुनर तुझ को अगर मिल जाए
इश्क़ को अश्कों के दरिया की रवानी लिखना

इस इशारे को वो समझा तो मगर मुद्दत बाद
अपने हर ख़त में उसे रात-की-रानी लिखना

- कुँवर बेचैन

 

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