अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

ग़ज़ल - अमन का फ़रमान  (काव्य)

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Author: अफरंग

अमन का और मोहब्बत का ना तू फ़रमान बन पाया,
तू दुनिया में बना क्या-क्या; ना एक इंसान बन पाया|

मज़हब कोई सिखाए ना, जो नफ़रत क़ैद है तुझमें,
तू ना ही शंख का सुर है; ना तू अज़ान बन पाया|

पराये क्या और अपने क्या; तू सबको ही रुलाता है,
कि लोगों को हँसाने का ना तू अरमान बन पाया|

महज़ कागज़ के टुकड़े कुछ तेरी क़ीमत में शामिल हैं,
जो बाज़ारों का दुश्मन हो ना वो ईमान बन पाया|

तेरे ख़ूनी इरादे हैं; तू क़त्ल-ए-आम करता है,
किसी की जाँ बचा ले जो ना तू वो जान बन पाया|

- अफरंग

 

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