अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

आदमी की वंदना करो (काव्य)

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Author: डॉ नथमल झँवर

सब प्रसन्न हों, ना कोई भी उदास हो आशावादी हों, ना कोई भी निराश हो
देश हित जिए, मरें भी देश के लिए ये तम न हो कहीं भी, सूर्य सा प्रकाश हो
दुश्मनों के आगे कभी शीश ना झुके देशहित बढ़े कदम, कभी भी ना रुकें
यह कदम बढ़ें तो सिर्फ देश के लिए शीश गर चढ़े तो सिर्फ देश के लिए

आसमान छू ले वतन कामना यही
विश्व में हो नाम, ये हमारी आस हो

स्नेह की हवा बहे सभी दिशाओं में
प्रेम - रस भी ओत-प्रोत हो शिराओं में
चन्द्रकिरण सी नहा उठे ये यामिनी
झूम-झूम गीत गाए दिल की रागिनी

सब तरफ बहार ही बहार हो यहाँ
प्यार हो सभी में, दूर हो या पास हो

उठो दीन-हीन को गले से लगाओ
जो हैं प्यासे उनकी आज प्यास बुझाओ
भूख से तड़प रहे जो, अन्न दान दो
जो हैं वस्त्र-हीन, उन्हें वस्त्रदान दो

आत्मा सभी में तुमसा एक जैसा हैं
कामना करो कि कोई ना हताश हो

और के न काम आए कैसी जिन्दगी ?
प्रेम ना हृदय में हो तो कैसी बंदगी ?
देश औ समाज के लिए जिओ मरो
हो सके तो आदमी की वंदना करो

-डॉ नथमल झँवर
मो: 94791-07245
झँवर निवास
मेन रोड सिमगा
जिला बलौदा बाजार (छ•ग•)
nathmaljhanwar22@gmail.com

 

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