प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।

पल्लवी गोपाल गुप्ता की दो कविताएं (काव्य)

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Author: पल्लवी गोपाल गुप्ता

अस्तित्व

नैनों के सपनों से
शुरु हुआ इक सफर
अपनो के अरमानों को पूरा करते-करते
नहीं रही अपनी ही खबर
कब खो गया मेरा अस्तित्व?
क्यूं खो गया मेरा अस्तित्व!

कल ही तो मेरे पंखों में उड़ान थी
कल ही तो मंजिल मेरी आसमान थी
कब में बंधनों में बँध गई
क्यूँ मेरी मंजिल जमीन हो गई
खुद से पूछती हूँ मैं अब
क्यूँ खो गया मेरा अस्तित्व!
कहाँ खो गया मेरा अस्तित्व?

मुझे तो इक घर बनाना था
मुझे तो बस सबका प्यार पाना था
कब मैं पिंजरे में कैद हो गई
कैसे मैं खुद से ही दूर हो गई
खुद से पूछती हूं मैं अब -
कब खो गया मेरा अस्तित्व!
कहाँ खो गया मेरा अस्तित्व?

अब तो इक जमाना सा हो गया
ये किस्सा बहुत पुराना सा हो गया
अपनो की दुनिया को सजाते संवारते हुए
मेरा जीना तो जैसे इक बहाना सा हो गया
पूछती नहीं में खुद से अब -
क्यूं खो गया मेरा अस्तित्व!
कहाँ खो गया मेरा अस्तित्व?

- पल्लवी गोपाल गुप्ता



किताब


अकसर ख्यालों में कई ख्याल आते है,
जिंदगी के हर पन्ने से कई सवाल आते है।


रोज लिखते है,रोज पढ़ते है।
पलटतें है हर दिन कई कागजों को,
कुछ अधूरे कुछ पूरे समझ,फिलहाल आते है,
जिंदगी के हर पन्ने से कई सवाल आते है।


दर्ज हर पन्ने पे इक दास्तान है,
जिसका जिंदगी में अपना ही इक मकाम है,
कुछ रिश्ते जिन्होंने जिंदगी को तस्वीर दी,
इक प्यार जिसने उस तस्वीर को तकदीर दी,
कुछ बंधन जिन्होंने बाँधे रक्खा दिलों को,
इक अहसास जिसने खोने न दिया किसी को,
अब हर पन्ने पे नजर रंग हजार आते है...
अकसर ख्यालों में यही ख्याल आते है।

- पल्लवी गोपाल गुप्ता

 

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