देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।

ज़माना रिश्वत का (काव्य)

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Author: यादराम शर्मा

है पैसे का जोर, ज़माना रिश्वत का
चर्चा चारों ओर, ज़माना रिश्वत का
कोतवाल को आकर खुद ही थाने में
डाँटे उलटा चोर, ज़माना रिश्वत का
कटी व्यवस्था की पतंग जिन हाथों से
उन हाथों में डोर, ज़माना रिश्वत का
बोले भी तो कैसे वो सच की भाषा
है दिल से कमज़ोर, ज़माना रिश्वत का
जैसे भी हो, अब तो घर में दौलत की
हो वर्षा घनघोर, ज़माना रिश्वत का
समझदार अधिकारी बोला बाबू से-
दोनों हाथ बटोर, ज़माना रिश्वत का

-यादराम शर्मा

साभार- चुनी हुई हास्य कविताएँ
गिरिराजशरण अग्रवाल, डायमंड पॉकेट बुक्स

 

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