भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।

उठो सोए भारत के नसीबों को जगा दो (काव्य)

Print this

Author: जी.एस. ढिल्‍लों

उठो सोए भारत के नसीबों को जगा दो
आजा़दी यूँ लेते हैं जवाँ, ले के दिखा दो
खूँखार बनो शेर मेरे हिन्‍दी सिपाही
दुश्‍मन की सफ़े तोड़ दो एक तहलका मचा दो।

आ हिन्‍द के बदल में उदू चीज़ ही क्‍या है
ग़र रास्‍ते में हो भाई, उसे मार गिरा दो।

मीनारे-कुतुब देखता है राह तुम्‍हारी,चल,
उसकी बुलन्‍दी को तिरंगे से सजा दो।
कर याद शहीदों का लहू देश की खातिर
एक-दो भी दुश्‍मन को हजा़रों से लड़ा दो।

क्‍यों लाल किला यूँ रहे दुश्‍मन के हवाले
हर लश्‍करे-हिन्‍दी की वहाँ धूम मचा दो।
हो भूख, हो तकलीफ़, रुकावट हो थकावट
वहाँ जख्‍म गिरा मौत को भी हँस के दिखा दो।

और कोई ख्‍वाहिश है न तमन्‍ना मेरे दिल में,
आजाद वतन हिन्‍द में जय हिन्‍द बुला दो।

- जी.एस. ढिल्‍लो [आज़ाद हिंद फौज के क़ौमी तराने]

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश