अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

वो जब भी | ग़ज़ल (काव्य)

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Author: डा भावना

वो जब भी भूलने को बोलते हैं
किसी शीशे से पत्थर तोड़ते हैं

वो अपना सच छुपाने के लिए ही
हमेशा बात का रुख मोड़ते हैं

लपट उठती है अक्सर उस जगह पर
जहां पर आग में घी जोड़ते हैं

नयन गीले हुए जाते हैं हरदम
जो उसके वास्ते हम सोचते हैं

जिधर भी जायें हम, जाने वो कैसे
वो अपनी राह हमसे जोड़ते हैं

- डॉ० भावना

ई-मेल:  bhavnakumari52@gmail.com

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