देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।

सयाना (काव्य)

Print this

Author: गोलोक विहारी राय

आदि काल से बस यूँ ही, चला आ रहा खेल।
बनने और बनाने की, चलती रेलम पेल।।
चलती रेलम पेल, दाँव जब जिसका चलता।
कहते उसको बुद्धिमान, वही सभी को छलता।।
कहे भोला भुलक्कड़, जिस पर हँसे जमाना।
कोई मूरख कहता उसको, कहता कोई दीवाना।।

मूर्ख यहाँ कोई नहीं, बनते सब होशियार।
एक दूसरे से अधिक, अकल सभी में यार।।
अकल सभी में यार, एक से एक सयाना।
बात बात में सब करे, एक से एक बहाना।।
कहे भोला भुल्लकड़, प्रभु बस इतना बतला देना।
मूर्ख कहे यदि दुनिया, खुद पर हँसना सिखला देना।।

- गोलोक विहारी राय

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें