अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
मात | लघु-कथा (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:अमिता शर्मा

 

"इतनी उखड़ी हुई क्यों हो?"


उसका चेहरा इतना उदास कभी न था।


उसका सारा आत्म-विश्वास, उसका दर्प-अभिमान सब नदारद था।


"....Feeling embarrassed, yaar....."


उसका स्वर बहुत बुझा हुआ था।


"मगर क्यों? अभी तो online थी!"


"तभी तो---! मेरा तो अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया। मुझसे तो मेरी पहचान ही छीन ली है उसने---"


"कुछ बताओगी भी या पहेलियां ही बुझाती रहोगी!"


"देख लो, खुद ही देख लो। कैसे कमेंट्स मिले हैं मुझे।"


"वाह! बिल्कुल आदमी की तरह रंग बदलती हो --"


"देख लिया न!"  कहते-कहते गिरगिट रो पड़ी।


- अमिता शर्मा, भारत।

 

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