देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
सरफ़रोशी की तमन्ना  (काव्य)  Click to print this content  
Author:पं० रामप्रसाद बिस्मिल

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है॥

राहरवे राहे मुहब्बत रह न जाना राह में ।
लज्जते सहरा नवरदी दूरिये मंहिल में है॥

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आस्मां।
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है॥

आके मकतल में यह कातिल कह रहा है बार बार।
क्या तम्नाये शहादत भी किसी के दिल में है॥

एक से करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत।
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है॥

ए शहीदे मुल्क मिल्लत तेरे कदमों पर निसार।
तेरी कुर्बानी का चर्चा गैर की महफ़िल में है॥

अब न अगले वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़।
एक मिट जाने की हसरत अब दिले 'बिस्मिल' में है॥

-पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल'

[यह रचना अजीमाबाद के मशहूर शायर बिस्मिल अजीमाबादी की रचना थी लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल इसे अक्सर गुनगुनाया करते थे। भारतीय जनमानस में इस रचना की पहचान राम प्रसाद बिस्मिल से अधिक हुई है।]

मूल रचना निम्नलिखित है:सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है

वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है

रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है

शौक़ से राह-ए-मोहब्बत की मुसीबत झेल ले
इक ख़ुशी का राज़ पिन्हाँ जादा-ए-मंज़िल में है

आज फिर मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
आएँ वो शौक़-ए-शहादत जिन के जिन के दिल में है

मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है

माने-ए-इज़हार तुम को है हया, हम को अदब
कुछ तुम्हारे दिल के अंदर कुछ हमारे दिल में है

मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है

वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है

अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है

--बिस्मिल अज़ीमाबादी

 

 

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