परिवार की लाड़ली | लघु-कथा (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:माधव नागदा

एक साथ तीन पीढ़ियां गांव के बस स्टेण्ड पर बस का इंतजार कर कही थीं| दादी,मां,पिता, बेटा और उसकी नई-नवेली बहू| बस स्टेण्ड हाइवे के किनारे था हालांकि यातायात की कमी नहीं थी लेकिन लोकल बसों की कमी थी| फलस्वरूप लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ता था|

समय गुजारने के लिये बेटे ने एक तरीका ढूंढ निकाला| वह आते-जाते ट्रकों के पीछे की लिखावटों को पढ़ने लगा |जरा जोर से ताकि सब सुन लें| कोई रोमांटिक सी बात होती तो बहू की ओर देख कर और जोर से बोलता| बहू घूंघट कुछ ऊपर उठाती नीचे का ओंठ दांतों तले दबाती और सबकी नजरें बचाते हुए पति की ओर आंखें तरेरती| पति को पत्नी के चेहरे की यह लिखावट ट्रक की लिखावट से भी ज्यादा रोमांचित कर देती| उसे इंतजार में भी अनोखा आनंद आने लगा|

अभी-अभी मार्बल से लदा एक ट्रक गुजरा था| ओवरलोड| धीमी रफ्तार| दर्द से कराहता हुआ सा, लिखा था, ‘परिवार की लाडली।' बेटे ने कहा, वो देखो परिवार की लाडली जा रही है और बड़े लाड़ से पत्नी को निहारा|

"हुंह, इतना तो बोझा लाद रखा है और परिवार की लाड़ली!" पत्नी ने व्यंग्य किया|

सासूजी सुन रही थी| उन्होंने तिरछी निगाहों से अपने पति व सास की तरफ देखा, फिर बोली,"इतना बोझा लाद रखा है तभी तो परिवार की लाड़ली है| वरना.....|" बहू ने महसूस किया कि सासूजी की आवाज घुट कर रह गई है|

- माधव नागदा
ई-मेल: madhav123nagda@gmail.com

 

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