जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
तेरा हाल मुझसे (काव्य)  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी'

तेरा हाल मुझसे जो पूछा किसी ने
न मैं बोल पाया ना तू अब रही है

न घर-घर लगे है ना दिल ही थमे है
कि जिस रोज से माँ मेरी चल बसी है

अभी आ रही हैं तुम्हारी सदाएं
यहीं पर कहीं पर तू जैसे खड़ी है

न उसने बुलाया ना आवाज़ ही दी
पता तब चला घर में माँ ना रही है

-रोहित कुमार 'हैप्पी'

[माँ को सादर समर्पित]

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