जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
तेरा हँसना कमाल था साथी | ग़ज़ल (काव्य)  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी'

तेरा हँसना कमाल था साथी
हमको तुमपर मलाल था साथी

दाग चेहरे पे दे गया वो हमें
हमने समझा गुलाल था साथी

रात में आए तेरे ही सपने
दिन में तेरा ख्याल था साथी

उड़ गई नींद मेरी रातों की
तेरा कैसा सवाल था साथी

करने बैठे थे दिल का वो सौदा
कोई आया दलाल था साथी

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

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