प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।
हिन्दी भाषा की समृद्धता (विविध)    Print  
Author:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra
 

यदि हिन्दी अदालती भाषा हो जाए, तो सम्मन पढ़वाने के लिए दो-चार आने कौन देगा, और साधारण-सी अर्जी लिखवाने के लिए कोई रुपया-आठ आने क्यों देगा। तब पढ़ने वाले को यह अवसर कहाँ मिलेगा कि गवाही के सम्मन को गिरफ्तारी का वारण्ट बता दें।

सभी सभ्य देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग किया जाता है। यही ऐसा देश है, जहाँ अदालती भाषा न तो शासकों की मातृ-भाषा है और न प्रजा की। यदि आप दो सार्वजनिक नोटिस-एक उर्दू में और एक हिन्दी में-लिख कर भेजें, तो आपको आसानी से मालूम हो जाएगा कि प्रत्येक नोटिस को समझने वाले लोगों का क्या अनुपात है। जो सम्मन जिलाधीशों द्वारा जारी किये जाते हैं, उनमें हिन्दी का प्रयोग होने से रैयत और जमींदारों को हार्दिक प्रसन्नता प्राप्त हुई है। साहूकार और व्यापारी अपना हिसाब-किताब हिन्दी में रखते हैं। हिन्दुओं का निजी पत्र-व्यवहार भी हिन्दी में होता है। हिन्दुओं के परिवारों में हिन्दी बोली जाती है। उनकी स्त्रियाँ हिन्दी लिपि का प्रयोग करती हैं। पटवारी के कागजात हिन्दी में लिखे जाते हैं, और ग्रामों के अधिकतर स्कूल हिन्दी में शिक्षा देते हैं।

जनगणना के आँकड़ों पर दृष्टि डालने से मेरे कथन की और अधिक पुष्टि हो जाएगी। उनसे ज्ञात होगा कि उर्दू जाननेवालों की तुलना में हिन्दी जानने वालों की संख्या अत्यधिक है। अभी तक किसी ने इन तथ्यों की समीक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया है। यदि दिया होता, तो यह विवाद बहुत पहले हमारे पक्ष में तय हो जाता। इस यथार्थता का प्रमाण आपको डाकघर से मिल सकता है। मैंने एक डाकघर में पूछताछ की और मुझे पता चला कि आने-जाने वाले पत्रों में आधे से अधिक ऐसे होते हैं, जिनमें पते हिन्दी अक्षरों में लिखे हुए होते हैं। अदालतों में जो कागजात दाखिल किये जाते हैं, उनमें भी अत्यधिक ऐसे होते हैं जिन पर हस्ताक्षर हिन्दी में होते हैं। विक्रयनोटिस मनोरंजन या खेलकूद के कार्यक्रम, बहुधा हिन्दी में ही प्रकाशित किये जाते हैं। लखनऊ तथा मुसलमानी प्रभाव के अन्य स्थानों के सिवाय पश्चिमी प्रान्त के किसी भी नगर में पूछताछ करने से मेरे कथन की सच्चाई सिद्ध हो सकती है। ईसा मसीह के सन्देश भी, जो ईसाई धर्म प्रचारक जनता में वितरित करते हैं, सामान्यत: हिन्दी में या मराठी, गुजराती, बंगाली जैसी सहपारिवारिक लिपियों में छापे जाते हैं। कुछ व्यक्तियों का कहना है कि वेग गति से लिखने वाले लेखक हिन्दी में उपलब्ध नहीं हैं। मैं यह दृढ़ आश्वासन दे सकता हूँ कि मैं एक मास में ऐसे हजार व्यक्ति प्राप्त कर सकता हूँ।

- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

[प्रस्तुति: रोहित कुमार 'हैप्पी', भारत-दर्शन संकलन]

विशेष: 2 सितंबर 2015 तक इंटरनेट पर अन्यत्र प्रकाशित नहीं। आप सहर्ष इस सामग्री को प्रकाशित कर सकते हैं। कृपया 'भारत-दर्शन' का उल्लेख करते हुए, इसका लिंक प्रदान करें।

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश