ओ उन्मुक्त गगन के पाखी (काव्य)    Print  
Author:मंजुल भटनागर
 

ओ उन्मुक्त गगन के पाखी
मेरे आंगन आ के देख

छत पर बैठ राह निहारूं
दाने मेरे कितने मीठे तू इनको खा के देख

दर्द बहुतेरे इस दुनिया में
तू खुशियों को फैला कर देख

जंगल में जब आग लगी हो
अपना नीड़ बचा कर देख

माँ की ममता कितनी न्यारी
यह बातें समझा कर देख

मेरी आँखे राह ताके
प्रीतम का पैगाम ले जाकर तो देख ।

- मंजुल भटनागर

 

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