प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।
अहसास | सुशांत सुप्रिय की कविता (काव्य)    Print  
Author:सुशांत सुप्रिय
 

जब से मेरी गली की कुतिया
झबरी चल बसी थी
गली का कुत्ता कालू
सुस्त और उदास
रहने लगा था

कभी वह मुझे
किसी दुखी दार्शनिक-सा लगता
कभी किसी हताश भविष्यवेत्ता-सा
कभी वह मुझे
कोई उदास कहानीकार लगता
कभी किसी पीड़ित संत-सा

वह मुझे और न जाने
क्या-क्या लगता
कि एक दिन अचानक
गली में आ गई
एक और कुतिया
गली के बच्चों ने
जिसका नाम रख दिया चमेली

मैंने पाया कि
चमेली को देखते ही
ख़ुशी से उछलते-कूदते हुए
रातोंरात बदल गया
हमारा कालू

कितना आदमी-सा
लगने लगा था
वह जानवर भी
अपनी प्रसन्नता में


- सुशांत सुप्रिय
 मार्फ़त श्री एच.बी. सिन्हा
 5174 , श्यामलाल बिल्डिंग ,
 बसंत रोड,( निकट पहाड़गंज ) ,
 नई दिल्ली - 110055
मो: 9868511282 / 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश