अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
हैं चुनाव नजदीक सुनो भइ साधो  (काव्य)    Print  
Author:ऋषभदेव शर्मा
 

हैं चुनाव नजदीक, सुनो भइ साधो
नेता माँगें भीख, सुनो भइ साधो

गंगाजल का पात्र, आज सिर धारें
कल थूकेंगे पीक, सुनो भइ साधो

निकल न जाए साँप, तान लो लाठी
फिर पीटोगे लीक, सुनो भइ साधो

खद्दरधारी हिरन बड़े मायावी
झूठी इनकी चीख, सुनो भइ साधो

करतूतों की पोल, चौक में खोलो
लोकतंत्र की सीख, सुनो भइ साधो

- डॉ.ऋषभदेव शर्मा
(धूप ने कविता लिखी है, 2014)

 

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश