जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
चिट्ठी | बाल कविता (बाल-साहित्य )    Print  
Author:प्रकाश मनु | Prakash Manu
 

चिट्ठी में है मन का प्यार
चिट्ठी है घर का अखबार
इस में सुख-दुख की हैं बातें
प्यार भरी इस में सौग़ातें
कितने दिन कितनी ही रातें
तय कर आई मीलों पार।

यह आई मम्मी की चिट्ठी
लिखा उन्होंने प्यारी किट्टी
मेहनत से तुम पढ़ना बेटी
पढ़-लिखकर होगी होशियार।
पापा पोस्ट कार्ड लिखते हैं।
घने-घने अक्षर दिखते हैं।

जब आता है बड़ा लिफ़ाफ़ा
समझो चाचा का उपहार।
छोटा-सा काग़ज़ बिन पैर
करता दुनिया भर की सैर
नए-नए संदेश सुनाकर
जोड़ रहा है दिल के तार।

- प्रकाश मनु

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