अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
देश के लाल - लाल बहादुर शास्त्री (कथा-कहानी)    Print  
Author:भारत-दर्शन संकलन | Collections
 

एक छोटा बालक अपने साधियों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे जाने लगे तो उस बालक को आभास हुआ कि उसके पास नाव के किराये के लिए पैसे नहीं हैं। उसने अपने साथियों से कहा कि वह थोड़ी देर और मेला देखेगा और बाद में आएगा। स्वाभिमानी बालक को किसी से नाव का किराया मांगना स्वीकार्य न था।

जब अन्य बच्चे नाव में सवार हो नदी पार जा चुके और उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब इस बालक ने अपने कपड़े उतार उन्हें सिर पर लपेट लिया और नदी में तैरने को उतर गया। उस समय नदी उफान पर थी।

पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने उसे अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह लड़का न रुका, और तैरता हुआ दूसरे छोर पर जा पहुँचा। यह स्वाभमानी बालक था 'लालबहादुर शास्त्री'।

[ भारत-दर्शन संकलन ]

 

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