अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
पंडित चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जयंती | 7 जुलाई
 
 

हिंदी के प्रमुख रचनाकार पंडित चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी'का जन्म 7 जुलाई, 1883 को पुरानी बस्ती जयपुर में हुआ था ।

Usne Kaha Tha ke amar kahanikaar - Guleriji.

कहानी लेखन के अतिरिक्त नए शोध प्रमाणित करते हैं कि गुलेरी जी एक उत्कृष्ट निबंध लेखक, प्रखर समालोचक, भाषा-शास्त्री, निर्भीक पत्रकार एवं सफल कवि भी थे

गुलेरी जयंतीपर उनकी कुछ रचनाएं यहाँ प्रकाशित की गई हैं जिनमें उनकी कहानियों के अतिरिक्त लघु-कथा व कविताएं भी सम्मिलित हैं। 'गुलेरी जयंती' पर पढ़िए सुदर्शन वशिष्ठ का विवेचन, 'पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का कथा संसार'। 

लघु-कथाओं के अंतर्गत गुलेरी की 'गालियां', 'भूगोल', 'पाठशाला' व गुलेरी की कालजयी कहानी, 'उसने कहा था' व इसी का अगला भाग कही जाने वाली गुलेरी की कहानी, 'हीरे का हीरा' प्रकाशित की गई हैं। इसके अतिरिक्त उनकी कुछ कविताएं व निबंध, 'कछुआ धर्म' भी प्रकाशित किया गया है।

गुलेरी जी की कविताएं भी उनकी कहानियों से कम नहीं, उनकी कविता 'सोऽह' के तेवर देखिए -

करके हम भी बी० ए० पास
हैं अब जिलाधीश के दास ।
पाते हैं दो बार पचास
बढ़ने की रखते हैं आस ॥१॥

पूरी कविता 'सोऽह' पढ़िए। 

 
उसने कहा था

(एक)
बडे-बडे शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की जवान के कोड़ो से जिनकी पीठ छिल गई है, और कान पक गये हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बोली का मरहम लगायें। जब बडे़-बडे़ शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ चाबुक से धुनते हुए, इक्केवाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट-सम्बन्ध स्थिर करते हैं, कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने पर तरस खाते हैं, कभी उनके पैरों की अंगुलियों के पोरे को चींघकर अपने-ही को सताया हुआ बताते हैं, और संसार-भर की ग्लानि, निराशा और क्षोभ के अवतार बने, नाक की सीध चले जाते हैं, तब अमृतसर में उनकी बिरादरी वाले तंग चक्करदार गलियों में, हर-एक लङ्ढी वाले के लिए ठहर कर सब्र का समुद्र उमड़ा कर, 'बचो खालसाजी। "हटो भाईजी।"ठहरना भाई जी।"आने दो लाला जी।"हटो बाछा।' - कहते हुए सफेद फेटों, खच्चरों और बत्तकों, गन्नें और खोमचे और भारेवालों के जंगल में से राह खेते हैं। क्या मजाल है कि जी और साहब बिना सुने किसी को हटना पडे़। यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती नहीं; पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती हुई। यदि कोई बुढ़िया बार-बार चितौनी देने पर भी लीक से नहीं हटती, तो उनकी बचनावली के ये नमूने हैं - 'हट जा जीणे जोगिए'; 'हट जा करमा वालिए'; 'हट जा पुतां प्यारिए'; 'बच जा लम्बी वालिए।' समष्टि में इनके अर्थ हैं, कि तू जीने योग्य है, तू भाग्योंवाली है, पुत्रों को प्यारी है, लम्बी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहिये के नीचे आना चाहती है? बच जा। ऐसे बम्बूकार्टवालों के बीच में होकर एक लड़का और एक लड़की चौक की एक दूकान पर आ मिले।

पाठशाला | चंद्रधर शर्मा गुलेरी

क पाठशाला का वार्षिकोत्सव था। मैं भी वहाँ बुलाया गया था। वहाँ के प्रधान अध्यापक का एकमात्र पुत्र, जिसकी अवस्था आठ वर्ष की थी, बड़े लाड़ से नुमाइश में मिस्टर हादी के कोल्हू की तरह दिखाया जा रहा था। उसका मुंह पीला था, आँखें सफेद थीं, दृष्टि भूमि से उठती नहीं थी। प्रश्न पूछे जा रहे थे। उनका वह उत्तर दे रहा था। धर्म के दस लक्षण सुना गया, नौ रसों के उदाहरण दे गया। पानी के चार डिग्री के नीचे शीतलता में फैल जाने के कारण और उससे मछलियों की प्राण-रक्षा को समझा गया, चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान दे गया, अभाव को पदार्थ मानने, न मानने का शास्त्रार्थ कर गया और इंग्लैंड के राजा आठवें हेनरी की स्त्रियों के नाम और पेशवाओं का कुर्सीनामा सुना गया।

यह पूछा गया कि तू क्या करेगा? बालक ने सिखा-सिखाया उत्तर दिया कि मैं यावज्जन्म लोकसेवा करूँगा। सभा 'वाह वाह' करती सुन रही थी, पिता का हृदय उल्लास से भर रहा था।
एक वृद्ध महाशय ने उसके सिर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया और कहा कि जो तू इनाम माँगे, वही दें। बालक कुछ सोचने लगा। पिता और अध्यापक इस चिंता में लगे कि देखें, यह पढ़ाई का पुतला कौन-सी पुस्तक माँगता है।

बालक के मुख पर विलक्षण रंगों का परिवर्तन हो रहा था, हृदय में कृत्रिम और स्वाभाविक भावों की लड़ाई की झलक आँखों में दीख रही थी। कुछ खाँसकर, गला साफ कर नकली परदे के हट जाने से स्वयं विस्मित होकर बालक ने धीरे से कहा, 'लड्डू।'

पिता और अध्यापक निराश हो गए। इतने समय तक मेरी साँस घुट रही थी। अब मैंने सुख की साँस भरी। उन सब ने बालक की प्रवृत्तियों का गला घोंटने में कुछ उठा नहीं रखा था, पर बालक बच गया। उसके बचने की आशा है, क्योंकि वह 'लड्डू' की पुकार जीवित वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था, मरे काठ की आलमारी की सिर दुखाने वाली खड़खड़ाहट नहीं।

कछुआ-धरम | निबंध

सोऽहम् | कविता

करके हम भी बी० ए० पास
          हैं अब जिलाधीश के दास ।
पाते हैं दो बार पचास
         बढ़ने की रखते हैं आस ॥१॥

सुनीति | कविता

निज गौरव को जान आत्मआदर का करना
निजता की की पहिचान, आत्मसंयम पर चलना
ये ही तीनो उच्च शक्ति, वैभव दिलवाते,
जीवन किन्तु न डाल शक्ति वैभव के खाते ।
(आ जाते ये सदा आप ही बिना बुलाए ।)
चतुराई की परख यहाँ-परिणाम न गिनकर,
जीवन को नि:शक चलाना सत्य धर्म पर,
जो जीवन का मन्त्र उसी हर निर्भय चलना,
उचित उचित है यही मान कर समुचित ही करना,
यो ही परमानंद भले लोगों ने पाए ।।

पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का कथा संसार | एक विवेचना

बहुआयाभी प्रतिमा के स्वाभी पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी के विषय में तीन बातें बहुत विलक्षण हैं । पहली तो ये कि उनकी Gulerijiएकमात्र कहानी 'उसने कहा था' आज से एक सदी पूर्व हिन्दी जगत में एक अभूतपूर्व घटना के रूप में प्रकट हुईं । दूसरी, संस्कृत के महापण्डित होने के साथ कई भाषाओं के ज्ञाता होते हुए भी एक विशुद्ध हिन्दी प्रेमी रहे । दर्शन शास्त्र ज्ञाता, भाषाविद, निबन्धकार, ललित निबन्धकार, कवि, कला समीक्षक, आलोचक, संस्मरण लेखक, पत्रकार और संपादक होते हुए वे हिन्दी को समर्पित रहे । और तीसरी यह कि 12 सितम्बर 1922 को केवल उनतालीस वर्ष, दो महीने और पांच दिन की अल्पायु में उनका देहावसान हो गया किंतु अपने अल्प जीवन में वे इतना अधिक हिन्दी साहित्य को दे गए जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती ।

हीरे का हीरा

[ अधिकतर पाठक गुलेरी जी की तीन कहानियों से परिचित हैं जिनमें 'उसने कहा था', 'बुद्धू का काँटा' व 'सुखमय जीवन' सम्मिलित हैं लेकिन कहा जाता है कि 'हीरे का हीरा' कहानी चंद्रधर शर्मा गुलेरी की 'उसने कहा था' का अगला भाग है जिसमें 'लहनासिंह की वापसी दिखाई गई है। इस कहानी के मूल रचनाकार गुलेरीजी ही हैं इसपर भी प्रश्न उठे हैं लेकिन यह कहानी गुलेरीजी की ही कहानी के रूप में प्रकाशित हुई है यथा गुलेरी जयंती पर यह कहानी प्रकाशित की जा रही है। ]

 

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