अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

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नारदजी को व्यासजी का नमस्कार!

वंदनीय, भक्तप्रवर, देवर्षि एवं आदिपत्रकार नारदजी महाराज, मेरे हार्दिक प्रणाम स्वीकार करें !

लगभग 45 वर्षों से आप नियमित 'हिन्दुस्तान' के सुधी पाठकों के लिए नई, ताज़ा और मनभावन ख़बरें ढूंढ़-ढूंढ़कर लाते रहे और हमारे पाठकों को हर्षाते और सरसाते रहे।

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खूनी हस्ताक्षर

वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमें उबाल का नाम नहीं ?
वह खून कहो किस मतलब का,
आ सके देश के काम नहीं ?

वह खून कहो किस मतलब का,
जिसमें जीवन न रवानी है ?
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं है पानी है !!

उस दिन लोगों ने सही-सही,
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नेताजी का तुलादान

देखा पूरब में आज सुबह,
एक नई रोशनी फूटी थी।
एक नई किरन, ले नया संदेशा,
अग्निबान-सी छूटी थी॥

एक नई हवा ले नया राग,
कुछ गुन-गुन करती आती थी।
आज़ाद परिन्दों की टोली,
एक नई दिशा में जाती थी॥

एक नई कली चटकी इस दिन,
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