मुस्लिम शासन में हिंदी फारसी के साथ-साथ चलती रही पर कंपनी सरकार ने एक ओर फारसी पर हाथ साफ किया तो दूसरी ओर हिंदी पर। - चंद्रबली पांडेय।
 

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कुछ मीठे, कुछ खट्टे अनुभव : 10वां विश्व हिंदी सम्मेलन

विश्व हिंदी सम्मेलन भव्य था। इसकी सराहना भी हुई, विरोध भी, आलोचना भी और जैसा कि होता आया है यह विवादों से परे भी नहीं था।

सम्मेलन आरम्भ होने से पहले ही यह विवादों के घेरे में आ गया था। इसका प्रतीक चिन्ह, इसकी वेब साइट और सरकारी कार्यप्रणाली! इन सब का विरोध व आलोचना पहले से ही शुरू हो गई थी। आइए, आपको ले चलते हैं इस दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन की खट्टी-मीठी यात्रा पर।

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हमारी इंटरनेट और न्यू मीडिया समझ

हमारी इंटरनेट और न्यू मीडिया समझ पर संकलित आलेख।

 

 

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कलयुग में गर होते राम

अच्छे युग में हुए थे राम
कलयुग में गर होते राम
बहुत कठिन हो जाते काम!
गर दशरथ बनवास सुनाते
जाते राम, ना जाने जाते
दशरथ वहीं ढेर हो जाते।
कलयुग में गर होते राम, बहुत कठिन हो जाते काम!

गर जाना ही बन पड़ जाता
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नये बरस में

नये बरस में कोई बात नयी चल कर लें
तुम ने प्रेम की लिखी है कथायें तो बहुत
किसी बेबस के दिल की 'आह' जाके चल सुन लें
तू अगर साथ चले जाके उसका ग़म हर लें
नये बरस में कोई बात नयी चल कर लें.....

नये बरस की दावतें हैं, जश्न हैं मनते
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कब लोगे अवतार हमारी धरती पर

फैला है अंधकार हमारी धरती पर
हर जन है लाचार हमारी धरती पर
हे देव! धरा है पूछ रही...
कब लोगे अवतार हमारी धरती पर !

तुम तो कहते थे धर्म की हानि होगी जब-जब
हर लोगे तुम पाप धरा के आओगे तुम तब-तब
जरा सुनों कि त्राहि-त्राहि चारों ओर से होती है
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कहानी गिरमिट की

फीज़ी में अनुबंधित श्रम 

दीनबंधु सी. एफ. एंड्रयूज़ ने दक्षिण अफ्रीका व फीज़ी में बसे अनुबंधित श्रमिकों के लिए बहुत काम किया। वे सितंबर 1915 में अपने एक साथी 'डब्ल्यू. डब्ल्यू. पियरसन' के साथ फीज़ी के शर्तबंध मज़दूरों (Indentured Labourers) की परिस्थितयों की जानकारी लेने फीज़ी गये थे।

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होली से मिलते जुलते त्योहार

भारत व पड़ोसी देशों में तो होली मनाई ही जाती है। विश्व के कई देशों में होली-फाग से मिलते जुलते-त्योहार मनाये जाते हैं।

ऑस्ट्रेलिया के ब्रिज़बन (Brisbane) नगर से 300 किमी दूर चिनचिला में 'चिनचिला मेलन फेस्टिवल' होता है।

हर ओर तरबूज ही तरबूज। कहीं तरबूजों को जूतों की तरह पहन कर लोग दौड़ते हुए प्रतियोगिता करते हैं, तो कहीं तरबूज को फेंकने के खेल चलते हैं। कहीं हाथों में तरबूज उठाए हुए एक टांग से भागने (लंगड़ी दौड़) की प्रतियोगिता, तो कहीं बिना हाथों का उपयोग किए तरबूज खाने की प्रतियोगिता लगती है।  इस त्योहार में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी सम्मिलित हैं। यदि आप गीत-संगीत का आनंद उठाना चाहें तो उसकी भी व्यवस्था है।

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हिंदी के बारे में कुछ तथ्य

  • सरहपाद को अपभ्रंश का पहला आदि कवि कहा जा सकता है। खुसरो से कहीं पहले सरहपाद का अस्तित्व सामने आता है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार अपभ्रंश की पहली कृति 'सरह के दोहों' के रूप में उपलब्ध है। [ राहुल सांकृत्यायन कृत दोहा-कोश से]
  • 1283 खुसरो की पहेली व मुकरी प्रकाश में आईं जो आज भी प्रचलित हैं।
  • हिंदी की पहली ग़ज़ल संभवत: कबीर की ग़ज़ल है।
  • 1805 में लल्लू लाल की हिंदी पुस्तक 'प्रेम सागर' फोर्ट विलियम कॉलेज, कोलकाता के लिए पहली हिंदी प्रकाशित पुस्तक थी।
  • हिन्दी का पहला साप्ताहिक समाचारपत्र उदन्त मार्तण्ड पं जुगलकिशोर शुक्ल के संपादन में मई 1826 में कोलकाता से आरम्भ हुआ था।
  • पं० जामनराव पेठे को राष्ट्रभाषा का प्रस्ताव उठाने वाला पहला व्यक्ति कहा जाता है। उन्होंने सबसे पहले भारत की कोई राष्ट्रभाषा हो के मुद्दे को उठाया। 'भारतमित्र' का इस विषय में मतभेद था। 'भारतमित्र' ने 'बंकिम बाबू' को इसका श्रेय दिया है।
  • 1833 में गुजराती कवि नर्मद ने भारत की राष्‍ट्रभाषा के रूप में हिंदी का नाम प्रस्तावित किया ।
  • 1877 में श्रद्धाराम फुल्लौरी ने 'भाग्यवती' नामक उपन्यास रचा। फल्लौरी 'औम जय जगदीश हरे' आरती के भी रचयिता हैं।
  • 1893 में बनारस (वाराणसी) में नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना हुई ।
  • 1900 में द्विवेदी युग का आरंभ हुआ जिसमें राष्ट्र-धारा का साहित्य सामने आया।
  • 1918 में गाँधी जी ने 'दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा' की स्थापना की ।
  • 1929 में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के 'हिंदी साहित्य का इतिहास' का प्रकाशन हुआ ।
  • 1931 में हिंदी की पहली बोलती फिल्म "आलम आरा" पर्दे पर आई।
  • 1996-97 में न्यूजीलैंड से प्रकाशित हिंदी पत्रिका 'भारत-दर्शन' इंटरनेट पर विश्व का पहला हिंदी प्रकाशन है। 

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ज्ञान का पाठ

डॉ० कलाम को समर्पित....


ज्ञान का पाठ उसने पढ़ाया हमें
ख्वाब भी लेना उसने सिखाया हमें

मन के आंगन में छाई जो काली घटा
गीत अभियान का गा सुनाया हमें

ख़ास होकर भी वो आदमी आम था
सादगी क्या है उसने बताया हमें

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किसे नहीं है बोलो ग़म

साँसों में है जब तक दम
किसे नहीं है बोलो ग़म!

हँस-हँस यूं तो बोल रहे हो
पर आँखें हैं क्योकर नम !

उठो, इरादे करो बुलंद
तूफ़ाँ भी जाएँगे थम !

चट्टानों से रखो इरादे
तुम्हें डिगा दे किसमें दम!

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