बच्चों की कविताएं |
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यहाँ आप पाएँगे बच्चों के लिए लिखा बाल काव्य जिसमें छोटी बाल कविताएं, बाल गीत, बाल गान सम्मिलित हैं।
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Articles Under this Category |
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साखियाँ - कबीर |
जाति न पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान। मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।।1।।
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक। कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक ।।2।।
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि। मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं ।।3।।
कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ। उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ ।।4।।
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय। या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय ।।5।। ...
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स्कूल में लग जाये ताला | बाल कविता - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas |
अब से ऐसा ही हो जाये भले किसी को पसंद न आये ... स्कूल में लग जाये ताला दें बस्तों को देश निकाला होमवर्क जुर्म घोषित हो, कोई परीक्षा ले न पाये ... दिन भर केवल खेलें खेल जो डाँटे उसको हो जेल खट्टा-मीठा खारा-तीता, जो चाहे जैसा वह खाये ... हरदम चले हमारी सत्ता हो दिल्ली चाहे कलकत्ता हम मालिक अपनी मर्जी के, हर गलती माँ-बाप को भाये ... मौसी-मामी, नाना-नानी रोज सुनायें नयी कहानी हम पंछी हैं, हम तितली हैं, गीत हमारा ही जग गाये ... अब से ऐसा ही हो जाये भले किसी को पंसद न आये ...
- जयप्रकाश मानस
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चिट्ठी | बाल कविता - प्रकाश मनु | Prakash Manu |
चिट्ठी में है मन का प्यार चिट्ठी है घर का अखबार इस में सुख-दुख की हैं बातें प्यार भरी इस में सौग़ातें कितने दिन कितनी ही रातें तय कर आई मीलों पार। ...
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पद - सूरदास |
मैया, कबहि बढ़ैगी चोटी? किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी। तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्नै है लाँबी-मोटी। काढ़त-गुहत न्हवावत जैहै, नागिनी सी भुइँ लोटी। काँचौ दूध पियावत पचि-पचि, देति न माखन-रोटी। सूरज चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी। ...
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पद - रैदास |
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी। प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी। प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा। प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती। प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा। प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
( 2 )
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै। गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ।। जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै। नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै।। नामदेव कबीरफ़ तिलोचनु सधना सैनु तरै। कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै।। ...
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दोहे - रहीम |
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस। जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।। ...
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हर देश में तू, हर भेष में तू - संत तुकड़ोजी |
हर देश में तू, हर भेष में तू, तेरे नाम अनेक तू एकही है। तेरी रंगभूमि यह विश्व भरा, सब खेल में, मेल में तू ही तो है।। सागर से उठा बादल बनके, बादल से फटा जल हो करके। फिर नहर बना नदियाँ गहरी, तेरे भिन्न प्रकार, तू एकही है।। चींटी से भी अणु-परमाणु बना, सब जीव-जगत् का रूप लिया। कहीं पर्वत-वृक्ष विशाल बना, सौंदर्य तेरा, तू एकही है।। यह दिव्य दिखाया है जिसने, वह है गुरुदेव की पूर्ण दया। तुकड़या कहे कोई न और दिखा, बस मैं अरु तू सब एकही है।।
- संत तुकड़ोजी ...
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बाबा आज देल छे आए - श्रीधर पाठक |
बाबा आज देल छे आए, चिज्जी पिज्जी कुछ ना लाए। बाबा क्यों नहीं चिज्जी लाए, इतनी देली छे क्यों आए। कां है मेला बला खिलौना, कलाकंद, लड्डू का दोना। चूं चूं गाने वाली चिलिया, चीं चीं करने वाली गुलिया। चावल खाने वाली चुहिया, चुनिया-मुनिया, मुन्ना भइया। मेला मुन्ना, मेली गैया, कां मेले मुन्ना की मैया। बाबा तुम औ कां से आए, आं आं चिज्जी क्यों ना लाए। ...
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छोटी-सी हमारी नदी - रवींद्रनाथ ठाकुर |
छोटी-सी हमारी नदी टेढ़ी-मेढ़ी धार, गर्मियों में घुटने भर भिगो कर जाते पार। पार जाते ढोर-डंगर, बैलगाड़ी चालू, ऊँचे हैं किनारे इसके, पाट इसका ढालू। पेटे में झकाझक बालू कीचड़ का न नाम, काँस फूले एक पार उजले जैसे घाम। दिन भर किचपिच-किचपिच करती मैना डार-डार, रातों को हुआँ-हुआँ कर उठते सियार। अमराई दूजे किनारे और ताड़-वन, छाँहों-छाँहों बाम्हन टोला बसा है सघन। कच्चे-बच्चे धार-कछारों पर उछल नहा लें, गमछों-गमछों पानी भर-भर अंग-अंग पर ढालें। कभी-कभी वे साँझ-सकारे निबटा कर नहाना छोटी-छोटी मछली मारें आँचल का कर छाना। बहुएँ लोटे-थाल माँजती रगड़-रगड़ कर रेती, कपड़े धोतीं, घर के कामों के लिए चल देतीं। जैसे ही आषाढ़ बरसता, भर नदिया उतराती, मतवाली-सी छूटी चलती तेज धार दन्नाती। वेग और कलकल के मारे उठता है कोलाहल, गँदले जल में घिरनी-भँवरी भँवराती है चंचल। दोनों पारों के वन-वन में मच जाता है रोला, वर्षा के उत्सव में सारा जग उठता है टोला। ...
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नाच रहा जंगल में मोर | बाल कविता - पुरुषोत्तम तिवारी |
हरा सुनहरा नीला काला रंग बिरंगे बूटे वाला चमक रहा है कितना चमचम इसका सुन्दर पंख निराला लंबी पूंछ मुकुट धर सिर पर भीमाकार देह अति सुन्दर कितनी प्यारी छवि वाले ये इन पर मोहित सब नारी नर ...
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बन्दर मामा | बाल कविता - दीपक श्रीवास्तव 'नादान' | Deepak Shrivastava |
बन्दर मामा बना रहे थे आम के नीचे खाना, लदा हुआ था पेड़ आम से, उसको मिला बहाना, खूब गिराए आम पेड़ से अब मैं बदला लूँगा, आम के नीचे खाना इसको नहीं बनाने दूंगा, बंदर मामा ने जैसे ही दाल में छौंक लगाया, आम ने ऊपर से बर्तन में बड़ा सा आम गिराया, बर्तन टूटा, मामा रूठा, रो-रो कर दिखलाया, फ़ैल गई सब दाल, आम पर मामा को गुस्सा आया, तब आम ने मामा को, बड़े प्यार से ये समझाया, खूब तोड़ते आम व्यर्थ में, जब पेट भरा होता है, व्यर्थ तोड़ने का फल मामा ऐसा ही होता है, खूब खाओ और खिलाओ, मुझ को दु:ख न होगा, व्यर्थ यदि फल तोड़ोगे, तो फिर ऐसा ही होगा, बन्दर मामा कान पकड़ कर आम के आगे आया, माफ़ करदो आम राजा, अब न ऐसा होगा, आज से जंगल का रखवाला, बन्दर मामा होगा। ...
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माँ कह एक कहानी - मैथिलीशरण गुप्त |
"माँ, कह एक कहानी !" "बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी ?" "कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी ? कह माँ, कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी ? माँ, कह एक कहानी ।" "तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे, तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभी मनमानी ।" "जहाँ सुरभी मनमानी! हाँ माँ, यही कहानी ।" "वर्ण-वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिन्दु झिले थे, हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी ।" "लहराता था पानी! हाँ, हाँ, यही कहानी ।" "गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हँस ऊपर से, गिरा बिद्ध होकर खर शर से, हुई पक्ष की कानी !" "हुई पक्ष की हानी ? करुणा-भरी कहानी !" "चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया । इतने में आखेटक आया, लक्ष्य-सिद्धि का मानी ।" "लक्ष्य-सिद्धि का मानी! कोमल-कठिन कहानी ।" "माँगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी । तब उसने, जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी ।" "हठ करने की ठनी! अब बढ़ चली कहानी ।" "हुआ विवाद सदय-निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में, गई बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी ।" "सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी ।" "राहुल, तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका ?" "माँ, मेरी क्या बानी ? मैं सुन रहा कहानी । कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य न उसे उबारे ? रक्षक पर भक्षक को वारे न्याय दया का दानी ।" "न्याय दया का दानी! तूने गुनी कहानी ।" ...
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बारिश की मस्ती | बाल कविता - अमृता गोस्वामी |
रिमझिम रिमझिम बारिश आई, काली घटा फिर है छाई। सड़कों पर बह उठा पानी, कागज़ की है नाव चलानी नुन्नू-मुन्नू-चुन्नू आए, रंग-बिरंगे छाते लाए। कहीं छप-छप, कहीं टप-टप, लगती कितनी अच्छी गपशप। रिमझिम बारिश की फौहारें मन को भातीं खूब बौछारें, बारिश की यह मस्ती है, हो चाहे कल छुट्टी है। - अमृता गोस्वामी, जयपुर ...
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एक तिनका - अयोध्या सिंह उपाध्याय |
मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ, एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा। आ अचानक दूर से उड़ता हुआ, एक तिनका आँख में मेरी पड़ा। ...
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मंजुल भटनागर की बाल-कविताएं | बाल कविता - मंजुल भटनागर |
दादी
चाँद की दादी आ जा ना ढेर खिलोने दे जा ना दूध जलेबी ले जा ना चाँद का कुर्ता क्यों सिलती है ? मुझको भी बतला जा ना कोई कहानी कह जा ना ...
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गिलहरी - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' |
कहते जिसे गिलहरी हैं सब । सभी निराले उसके हैं ढब ॥ ...
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बादल और बारिश | बाल कविता - रवि रंजन गोस्वामी |
बादल गुस्साए थे लड़ते भिड़ते आये थे धूम धूम धड़ाम धूम धूम धड़ाम बिजली चमकी बार बार और पानी बरसा मूसलाधार मुन्नी भागी मम्मी से चिपकी मुन्ना भागा खिड़की बंद कर दी ...
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बंदर - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' |
देखो लड़को ! बंदर आया । एक मदारी उसको लाया ॥ कुछ है उसका ढंग निराला । कानों में है उसके बाला ॥
फटे पुराने रंग बिरंगे । कपड़े उसके हैं बेढंगे ॥
मुँह डरावना आँखे छोटी । लंबी दुम थोड़ी सी मोटी॥
भौंह कभी वह है मटकाता । आँखों को है कभी नचाता ॥
ऐसा कभी किलकिलाता है । जैसे अभी काट खाता है ॥
दाँतों को है कभी दिखाता । कूद फाँद है कभी मचाता ॥
कभी घुड़कता है मुँह बा कर । सब लोगों को बहुत डराकर ॥
कभी छड़ी लेकर है चलता । है वह यों ही कभी मचलता ॥
है सलाम को हाथ उठाता । पेट लेट कर है दिखलाता ॥
ठुमक ठुमक कर कभी नाचता । कभी कभी है टके माँगता ॥ ...
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भैया-बहना | बाल कविता - अमिश भट्ट |
समय से सोता राजू भैया समय से सोती मिनी बहेना समय से ही दोनों उठ जाते झट पट हो तैयार हैं जाते फिर वे जल्दी नाश्ता खाते जिससे वे हैं पोषण पाते फिर वे दोनों स्कूल हैं जाते वहां बहुत सी शिक्षा पाते स्कूल से वापस घर हैं आते खाना खाकर खेलने जाते ...
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प्रकृति और मनुष्य | बाल कविता - सय्यद अरबाज़ |
प्रकृति हमारी कितनी प्यारी, सबसे अलग और सबसे न्यारी, देती है वो सबको सीख, समझे जो उसे नज़दीक, पेड़,पौधे,नदी,पहाड़, बनाए सुंदर ये संसार, पेड़ पर लगे विभिन्न पत्ते, सिखाते हमे रहना एक साथ, पेड़ की ज़िंदगी जड़ों पर टिकी है, मनुष्य की ज़िंदगी सत्कर्मों पर टिकी है, आसमान है ये विशाल अनंत, मनुष्य की सोंच का भी ना है अंत, हे मनुष्य! समझो ये बातें सारी, प्रकृति हमारी कितनी प्यारी, सबसे अलग और सबसे न्यारी बूँद-बूँद से बनती है नदी, एक सोंच से बदले ये सदी, मनुष्य करता है भेदभाव, जाने ना प्रकृति का स्वभाव, सबको होती है प्रकृति नसीब हो अमीर या हो ग़रीब, मनुष्य की तरह ना परखें, है अमीर या है ग़रीब, पेड़ सहता है बढ़ को, लेकर पृथ्वी का सहारा, मनुष्य सह सके बढ़ को,यदि सब खडें हो लेकर एक दूसरे का सहारा, करे जो प्रकृति को नाश, होता है उसका विनाश, मनुष्य जिए और जीने दे, मिलकर रहे सब एक साथ, परखो भैया यह बातें सारी, प्रकृति हमारी कितनी प्यारी, सबसे अलग और सबसे न्यारी. - सय्यद अरबाज़ ...
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मोर - जय प्रकाश भारती |
उमड़ उमड़ कर बादल आते देख-देख खुश होता मोर । रंग-गीले पंख खोलकर नाच दिखाता, करता शोर । अपने पाँव देख लेता जब तो बेचारा होता बोर । ...
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हमसे सब कहते - निरंकार देव सेवक |
नहीं सूर्य से कहता कोई धूप यहाँ पर मत फैलाओ, कोई नहीं चाँद से कहता उठा चाँदनी को ले जाओ।
कोई नहीं हवा से कहता खबरदार जो अंदर आई, बादल से कहता कब कोई क्यों जलधार यहाँ बरसाई?
फिर क्यों हमसे भैया कहते यहाँ न आओ, भागो जाओ, अम्मा कहती हैं, घर-भर में खेल-खिलौने मत फैलाओ।
पापा कहते बाहर खेलो, खबरदार जो अंदर आए, हम पर ही सबका बस चलता जो चाहे वह डाँट बताए।
- निरंकार देव सेवक ...
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कौन? - सोहन लाल द्विवेदी |
किसने बटन हमारे कुतरे? किसने स्याही को बिखराया? कौन चट कर गया दुबक कर घर-भर में अनाज बिखराया?
दोना खाली रखा रह गया कौन ले गया उठा मिठाई? दो टुकड़े तसवीर हो गई किसने रस्सी काट बहाई?
कभी कुतर जाता है चप्पल कभी कुतर जूता है जाता, कभी खलीता पर बन आती अनजाने पैसा गिर जाता
किसने जिल्द काट डाली है? बिखर गए पोथी के पन्ने। रोज़ टाँगता धो-धोकर मैं कौन उठा ले जाता छन्ने?
कुतर-कुतर कर कागज़ सारे रद्दी से घर को भर जाता। कौन कबाड़ी है जो कूड़ा दुनिया भर का घर भर जाता?
कौन रात भर गड़बड़ करता? हमें नहीं देता है सोने, खुर-खुर करता इधर-उधर है ढूँढ़ा करता छिप-छिप कोने?
रोज़ रात-भर जगता रहता खुर-खुर इधर-उधर है धाता बच्चों उसका नाम बताओ कौन शरारत यह कर जाता?
- सोहन लाल द्विवेदी ...
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गुरु और चेला - सोहन लाल द्विवेदी |
झगड़ने लगे फिर गुरु और चेला, मचा उनमें धक्का बड़ा रेल-पेला। गुरु ने कहा-फाँसी पर मैं चढूंगा, कहा चेले ने-फाँसी पर मैं मरूँगा। ...
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चिन्टू जी - प्रकाश मनु |
सब पर अपना रोब जमाते नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी ! भैया से अब्बा कहते हैं दीदी से करते हैं कुट्टी, पापा से कहते हैं - मेला दिखलाओ जी, कल है छुट्टी । कैसे-कैसे दांव चलाते नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी ! हलुआ-पूरी जी भर खाते या फिर बरफी पिस्ते वाली, रसगुल्ले जब आते घर में आ जाती चेहरे पर लाली । धमा-चौकड़ी खूब मचाते नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी ! हरदम बजती पीं-पीं सीटी. सारे दिन ही हल्ला-गुल्ला, कोई रोके तो कहते हैं क्या मैं बैठा रहूँ निठल्ला ! बिना बात की बात बनाते नन्हे-मुन्ने चिन्टू जी ! ...
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रेल | बाल कविता - हरिवंशराय बच्चन |
आओ हम सब खेलें खेल ...
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गिलहरी का घर | बाल कविता - हरिवंशराय बच्चन |
एक गिलहरी एक पेड़ पर बना रही है अपना घर, देख-भाल कर उसने पाया खाली है उसका कोटर ।
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खिलौनेवाला - सुभद्रा कुमारी चौहान |
वह देखो माँ आज खिलौनेवाला फिर से आया है। कई तरह के सुंदर-सुंदर नए खिलौने लाया है। हरा-हरा तोता पिंजड़े में गेंद एक पैसे वाली छोटी सी मोटर गाड़ी है सर-सर-सर चलने वाली। सीटी भी है कई तरह की कई तरह के सुंदर खेल चाभी भर देने से भक-भक करती चलने वाली रेल। गुड़िया भी है बहुत भली-सी पहने कानों में बाली छोटा-सा 'टी सेट' है छोटे-छोटे हैं लोटा-थाली। छोटे-छोटे धनुष-बाण हैं हैं छोटी-छोटी तलवार नए खिलौने ले लो भैया ज़ोर-ज़ोर वह रहा पुकार। मुन्नूौ ने गुड़िया ले ली है मोहन ने मोटर गाड़ी मचल-मचल सरला कहती है माँ se लेने को साड़ी कभी खिलौनेवाला भी माँ क्याख साड़ी ले आता है। साड़ी तो वह कपड़े वाला कभी-कभी दे जाता है। अम्मा तुमने तो लाकर के मुझे दे दिए पैसे चार कौन खिलौने लेता हूँ मैं तुम भी मन में करो विचार। तुम सोचोगी मैं ले लूँगा तोता, बिल्लीा, मोटर, रेल पर माँ, यह मैं कभी न लूँगा ये तो हैं बच्चों के खेल। मैं तो तलवार खरीदूँगा माँ या मैं लूँगा तीर-कमान जंगल में जा, किसी ताड़का को मारुँगा राम समान। तपसी यज्ञ करेंगे, असुरों- को मैं मार भगाऊँगा यों ही कुछ दिन करते-करते रामचंद्र मैं बन जाऊँगा। यही रहूँगा कौशल्याऊ मैं तुमको यही बनाऊँगा तुम कह दोगी वन जाने को हँसते-हँसते जाऊँगा। पर माँ, बिना तुम्हाेरे वन में मैं कैसे रह पाऊँगा? दिन भर घूमूँगा जंगल में लौट कहाँ पर आऊँगा। किससे लूँगा पैसे, रूठूँगा तो कौन मना लेगा कौन प्यानर से बिठा गोद में, मनचाही चींजे़ देगा। ...
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हम दीवानों की क्या हस्ती - भगवतीचरण वर्मा |
हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले, मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले । आए बनकर उल्लास अभी, आँसू बनकर बह चले अभी, सब कहते ही रह गए, अरे, अरे तुम कैसे आए, कहाँ चले ? किस ओर चले? मत ये पूछो, बस चलना है, इसलिए चले, जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले, दो बात कहीं, दो बात सुनी; कुछ हँसे और फिर कुछ रोए । छक कर सुख दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से पिए चले । हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वछन्द लुटाकर प्यार चले हम एक निशानी उर पर, ले असफलता का भार चले । हम मान रहित, अपमान रहित, जी भर कर खुलकर खेल चुके, हम हँसते हँसते आज यहाँ, प्राणों की बाज़ी हार चले । अब अपना और पराया क्या ? आबाद रहें रुकने वाले ! हम स्वयं बंधे थे और स्वयं, हम अपने बन्धन तोड़ चले । ...
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चाँद का कुरता - रामधारी सिंह दिनकर |
हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला, "सिलवा दो माँ, मुझे ऊन का मोटा एक झिगोला। ...
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फूलों जैसे उठो खाट से | बाल गीत - क्षेत्रपाल शर्मा |
फूलों जैसे उठो खाट से बछड़ों जैसी भरो कुलांचे अलसाये मत रहो कभी भी थिरको एसे जग भी नांचे नेक भावना रखो हमेशा जियो कि जैसे चन्दा तारे एसे रहो कि तुम सब के हो और सभी है सगे तुम्हारे फूलो फलो गाछ हो जैसे बोलो बहता नीर कांटे बनकर मत जीना तुम हरो परायी पीर कहना जो है सो तुम कहना संकट से भी मत घबराना उजियारे के लिये सलोने झान -ज्योति का दीप जलाना मत पडना तुम हेर फेर में जीना जीवन सादा प्यारा दीप सत्य है एक शस्त्र है होगा तब हीरक उजियारा ...
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काम हमारे बड़े-बड़े - चिरंजीत |
हम बच्चे हैं छोटे-छोटे, काम हमारे बड़े-बड़े । आसमान का चाँद हमी ने थाली बीच उतारा है, आसमान का सतरंगा वह बाँका धनुष हमारा है । आसमान के तारों में वे तीर हमारे गड़े-गड़े । हम बच्चे हैं छोटे-छोटे, काम हमारे बड़े-बड़े । भरत रूप में हमने ही तो दांत गिने थे शेरों के, और राम बन दांत किये थे खट्टे असुर-लुटेरों के । कृष्ण-कन्हैया बन कर हमने नाग नथा था खड़े- खड़े । हम बच्चे हैं छोटे-छोटे, काम हमारे बड़े-बड़े ।। बापू ने जब बिगुल बजाया देश जगा, हम भी जागे, आजादी के महायुद्ध में हम सब थे आगे-आगे । इस झंडे की खातिर हमने कष्ट सहे थे कड़े-कड़े । हम बच्चे है छोटे-छोटे, काम हमारे बड़े-बड़े ।। हर परेड गणतंत्र दिवस की हम बच्चों से सजती है, वीर बालकों. की झांकी पर खूब तालियां बजती हैं । पाते जन गण मन का आशिष हाथी पर हम चढ़े-चढ़े । हम बच्चे हैं छोटे-छोटे, काम हमारे बड़े-बड़े ।। ...
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मीठी वाणी | बाल कविता - प्रभुदयाल श्रीवास्तव |
छत पर आकर बैठा कौवा, कांव-कांव चिल्लाया । मुन्नी को यह स्वर ना भाया, पत्थर मार भगाया । ...
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बुरा न बोलो बोल रे - आनन्द विश्वास |
बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे, वाणी में मिसरी तो घोलो, बोल-बोल को तोल रे। मानव मर जाता है लेकिन, शब्द कभी ना मरता है। शब्द-बाण से आहत मन का, घाव कभी ना भरता है। सौ-सौ बार सोच कर बोलो, बात यही अनमोल रे, बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे।
पांचाली के शब्द-बाण से, कुरूक्षेत्र रंग लाल हुआ। जंगल-जंगल भटके पांडव, चीरहरण, क्या हाल हुआ। बोल सको तो अच्छा बोलो, वर्ना मुँह मत खोल रे, बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे।
जो देखोगे और सुनोगे, वैसा ही मन हो जायेगा। अच्छी बातें, अच्छा दर्शन, जीवन निर्मल हो जायेगा। अच्छा मन, सबसे अच्छा धन, मनवा जरा टटोल रे, बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे। ...
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प्रयास करो, प्रयास करो - वीर सिंह |
प्रयास करो, प्रयास करो जब तक हैं साँस प्रयास करो जब तक हैं आस प्रयास करो न हारो, न थको, न रुको, बढ़ो ओर जीतने का प्रयास करो ।
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