Important Links
लघुकथाएं |
लघु-कथा, *गागर में सागर* भर देने वाली विधा है। लघुकथा एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है, न कथा को ही। संकलित लघुकथाएं पढ़िए -हिंदी लघुकथाएँ व प्रेमचंद की लघु-कथाएं भी पढ़ें। |
Articles Under this Category |
मर्द - चित्रा मुद्गल |
आधी रात में उठकर कहां गई थी?" |
more... |
मात | लघु-कथा - अमिता शर्मा |
|
more... |
व्यथा - अमिता शर्मा |
आज ताई को कई दिनों के बाद पार्क में देखा तो मैंने दूर से आवाज दी, "ताई राम-राम!" |
more... |
बंद दरवाजा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand |
सूरज क्षितिज की गोद से निकला, बच्चा पालने से। वही स्निग्धता, वही लाली, वही खुमार, वही रोशनी। |
more... |
दूसरी दुनिया का आदमी | लघुकथा - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
वो शक्ल सूरत से कैसा था, बताने में असमर्थ हूँ। पर हाँ, उसके हाव-भावों से ये पूर्णतया स्पष्ट था कि वो काफी उदास और चिंतित था। |
more... |
हिंदी-दिवस | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
'देखो, 14 सितम्बर को 'हिंदी डे' है और उस दिन हमेंहिंदी लेंगुएज ही यूज़ करनी चाहिए। अंडरस्टैंड?'सरकारी अधिकारी ने आदेश देते हुए कहा। |
more... |
हिंदी डे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
'देखो, 14 सितम्बर को हिंदी डे है और उस दिन हमें हिंदी लेंगुएज ही यूज़ करनी चाहिए। अंडरस्टैंड?' सरकारी अधिकारी ने आदेश देते हुए कहा। |
more... |
मिट्टी और कुंभकार - नरेन्द्र ललवाणी | लघुकथा |
बार-बार पैरों तले कुचले जाने के कारण मिट्टी अपने भाग्य पर रो पड़ी । अहो! मैं कैसी बदनसीबी हूँ कि सभी लोग मेरा अपमान करते हैं । कोई भी मुझे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता जबकि मेरे ही भीतर से प्रस्फुटित होने वाले फूल का कितना सम्मान है । फूलों की माना पिरोकर गले में पहनी जाती है । भक्त लोग अपने उपास्य के चरणों में चढ़ाते हैं । वनिताएं अपने बालों में गूंथ कर गर्व का अनुभव करती हैं । क्या ही अच्छा हो कि मैं भी लोगों के मस्तिष्क पर चढ़ जाऊं! |
more... |