यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
ग़ज़लें
ग़ज़ल क्या है? यह आलेख उनके लिये विशेष रूप से सहायक होगा जिनका ग़ज़ल से परिचय सिर्फ पढ़ने सुनने तक ही रहा है, इसकी विधा से नहीं। इस आधार आलेख में जो शब्‍द आपको नये लगें उनके लिये आप ई-मेल अथवा टिप्‍पणी के माध्‍यम से पृथक से प्रश्‍न कर सकते हैं लेकिन उचित होगा कि उसके पहले पूरा आलेख पढ़ लें; अधिकाँश उत्‍तर यहीं मिल जायेंगे। एक अच्‍छी परिपूर्ण ग़ज़ल कहने के लिये ग़ज़ल की कुछ आधार बातें समझना जरूरी है। जो संक्षिप्‍त में निम्‍नानुसार हैं: ग़ज़ल- एक पूर्ण ग़ज़ल में मत्‍ला, मक्‍ता और 5 से 11 शेर (बहुवचन अशआर) प्रचलन में ही हैं। यहॉं यह भी समझ लेना जरूरी है कि यदि किसी ग़ज़ल में सभी शेर एक ही विषय की निरंतरता रखते हों तो एक विशेष प्रकार की ग़ज़ल बनती है जिसे मुसल्‍सल ग़ज़ल कहते हैं हालॉंकि प्रचलन गैर-मुसल्‍सल ग़ज़ल का ही अधिक है जिसमें हर शेर स्‍वतंत्र विषय पर होता है। ग़ज़ल का एक वर्गीकरण और होता है मुरद्दफ़ या गैर मुरद्दफ़। जिस ग़ज़ल में रदीफ़ हो उसे मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं अन्‍यथा गैर मुरद्दफ़।

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अश़आर - मुन्नवर राना

माँ | मुन्नवर राना के अश़आर
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ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है | ग़ज़ल - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi

ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है
समन्दरों ही के लहजे में बात करता है
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डॉ. राकेश जोशी की चार ग़ज़लें - डॉ. राकेश जोशी

जो दिया तुमने वो सब सहना पड़ा
पत्थरों के शहर में रहना पड़ा

दौर ऐसे भी कठिन आए हैं जब
दोस्तों को बेवफा कहना पड़ा

हम थे ऊंचे और शहर बौनों का था
जब कहा बौनों ने झुक, झुकना पड़ा

तुमको औरों से नहीं फुर्सत मिली
हमको खुद से ही सदा लड़ना पड़ा

हमने सच को सच कहा था इसलिए
हर सफ़र तनहा हमें करना पड़ा

हम मिटें, तुम चाहते हो, सोच, अपना
नाम पानी पर हमें लिखना पड़ा

क्या बताएँ किसलिए ‘राकेश' को
बारहा जीना पड़ा, मरना पड़ा

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तेरा हाल मुझसे - रोहित कुमार 'हैप्पी'

तेरा हाल मुझसे जो पूछा किसी ने
न मैं बोल पाया ना तू अब रही है

न घर-घर लगे है ना दिल ही थमे है
कि जिस रोज से माँ मेरी चल बसी है

अभी आ रही हैं तुम्हारी सदाएं
यहीं पर कहीं पर तू जैसे खड़ी है

न उसने बुलाया ना आवाज़ ही दी
पता तब चला घर में माँ ना रही है

-रोहित कुमार 'हैप्पी'

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जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है | ग़ज़ल  - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'

जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है
यह सवेरा भी क्या सवेरा है
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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल

बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से
इस दुनिया के लोग बना लेते हैं परबत राई से।
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