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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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माँ - जगदीश व्योम |
माँ कबीर की साखी जैसी |
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स्वप्न बंधन - सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant |
बाँध लिया तुमने प्राणों को फूलों के बंधन में |
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अश़आर - मुन्नवर राना |
माँ | मुन्नवर राना के अश़आर |
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ग्रामवासिनी - शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड |
भारत माता ग्रामवासिनी, |
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माँ कह एक कहानी - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
"माँ कह एक कहानी।" |
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कर्त्तव्यनिष्ठ - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
एक ने फेसबुक पर लिखा - |
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काका हाथरसी का हास्य काव्य - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार |
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हास्य दोहे | काका हाथरसी - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज, |
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ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है | ग़ज़ल - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi |
ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है |
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नहीं मांगता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से, |
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सुख-दुख | कविता - सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant |
मैं नहीं चाहता चिर-सुख, |
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बाँध दिए क्यों प्राण - सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant |
सुमित्रानंदन पंत की हस्तलिपि में उनकी कविता, 'बाँध दिए क्यों प्राण' |
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कड़वा सत्य | कविता - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
एक लंबी मेज |
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अरे भीरु - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
अरे भीरु, कुछ तेरे ऊपर, नहीं भुवन का भार |
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हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए | भजन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए |
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शब्द और शब्द | कविता - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
समा जाता है |
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माँ पर दोहे | मातृ-दिवस - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
जब तक माँ सिर पै रही बेटा रहा जवान। |
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अनसुनी करके - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
अनसुनी करके तेरी बात |
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रात भर का वह गहरा अँधेरा - शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड |
रात भर का वह गहरा अँधेरा, |
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मायने रखता है ज़िंदगी में - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
किसी का आना |
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डॉ. राकेश जोशी की चार ग़ज़लें - डॉ. राकेश जोशी |
जो दिया तुमने वो सब सहना पड़ा |
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गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
यहाँ हम रवीन्द्रनाथ टैगोर (रवीन्द्रनाथ ठाकुर) की सुप्रसिद्ध रचना 'गीतांजलि'' को श्रृँखला के रूप में प्रकाशित करने जा रहे हैं। 'गीतांजलि' गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861-1941) की सर्वाधिक प्रशंसित रचना है। 'गीतांजलि' पर उन्हें 1910 में नोबेल पुरस्कार भी मिला था। |
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दिन अँधेरा-मेघ झरते | रवीन्द्रनाथ ठाकुर - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
यहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना "मेघदूत' के आठवें पद का हिंदी भावानुवाद (अनुवादक केदारनाथ अग्रवाल) दे रहे हैं। देखने में आया है कि कुछ लोगो ने इसे केदारनाथ अग्रवाल की रचना के रूप में प्रकाशित किया है लेकिन केदारनाथ अग्रवाल जी ने स्वयं अपनी पुस्तक 'देश-देश की कविताएँ' के पृष्ठ 215 पर नीचे इस विषय में टिप्पणी दी है। |
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चल तू अकेला! | रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला, |
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तेरा हाल मुझसे - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
तेरा हाल मुझसे जो पूछा किसी ने |
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लोगे मोल? | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna |
लोगे मोल? |
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आजाद की मातृभूमि - संजय वर्मा |
अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली भाभरा को चंद्रशेखर आजाद नगर घोषित किये जाने पर समर्पित कविता :- |
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जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' |
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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल |
बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से |
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महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति - केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal |
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आज भी खड़ी वो... - सपना सिंह ( सोनश्री ) |
निराला की कविता, 'तोड़ती पत्थर' को सपना सिंह (सोनश्री) आज के परिवेश में कुछ इस तरह से देखती हैं: |
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छवि नहीं बनती - सपना सिंह ( सोनश्री ) |
निराला पर सपना सिंह (सोनश्री) की कविता |
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तितली | बाल कविता - नर्मदाप्रसाद खरे |
रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं। |
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माँ की ममता जग से न्यारी ! - डॉ शम्भुनाथ तिवारी |
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माँ की याद बहुत आती है ! - डॉ शम्भुनाथ तिवारी |
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