जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
बाल-साहित्य
बाल साहित्य के अन्तर्गत वह शिक्षाप्रद साहित्य आता है जिसका लेखन बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर किया गया हो। बाल साहित्य में रोचक शिक्षाप्रद बाल-कहानियाँ, बाल गीत व कविताएँ प्रमुख हैं। हिन्दी साहित्य में बाल साहित्य की परम्परा बहुत समृद्ध है। पंचतंत्र की कथाएँ बाल साहित्य का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। हिंदी बाल-साहित्य लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। पंचतंत्र, हितोपदेश, अमर-कथाएँ व अकबर बीरबल के क़िस्से बच्चों के साहित्य में सम्मिलित हैं। पंचतंत्र की कहानियों में पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों को बड़ी शिक्षाप्रद प्रेरणा दी गई है। बाल साहित्य के अंतर्गत बाल कथाएँ, बाल कहानियां व बाल कविता सम्मिलित की गई हैं।

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मैंने झूठ बोला था | बाल कथा - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

एक बालक था। नाम था उसका राम। उसके पिता बहुत बड़े पंडित थे। वह बहुत दिन जीवित नहीं रहे। उनके मरने के बाद राम की माँ अपने भाई के पास आकर रहने लगी। वह एकदम अनपढ़ थे। ऐसे ही पूजा-पाठ का ठोंग करके जीविका चलाते थे। वह झूठ बोलने से भी नहीं हिचकते थे।
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तोता-कहानी | रबीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

एक था तोता । वह बड़ा मूर्ख था। गाता तो था, पर शास्त्र नही पढ़ता था । उछलता था, फुदकता था, उडता था, पर यह नहीं जानता था कि क़ायदा-क़ानून किसे कहते हैं ।
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अनधिकार प्रवेश | रबीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

एक दिन प्रात:काल की बात है कि दो बालक राह किनारे खड़े तर्क कर रहे थे। एक बालक ने दूसरे बालक से विषम-साहस के एक काम के बारे में बाज़ी बदी थी। विवाद का विषय यह था कि ठाकुरबाड़ी के माधवी-लता-कुंज से फूल तोड़ लाना संभव है कि नहीं। एक बालक ने कहा कि 'मैं तो ज़रूर ला सकता हूँ' और दूसरे बालक का कहना था कि 'तुम हरगिज़ नहीं ला सकते।'
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विपदाओं से रक्षा करो, यह न मेरी प्रार्थना | बाल-कविता  - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

विपदाओं से रक्षा करो-
यह न मेरी प्रार्थना,
यह करो : विपद् में न हो भय।
दुख से व्यथित मन को मेरे
भले न हो सांत्वना,
यह करो : दुख पर मिले विजय।
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ओ मेरे देश की मिट्टी | बाल-कविता  - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

ओ मेरे देश की मिट्टी, तुझपर सिर टेकता मैं।
तुझी पर विश्वमयी का,
तुझी पर विश्व-माँ का आँचल बिछा देखता मैं।।
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राजा का महल | बाल-कविता  - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

नहीं किसी को पता कहाँ मेरे राजा का राजमहल!
अगर जानते लोग, महल यह टिक पाता क्या एक पल?
इसकी दीवारें चाँदी की, छत सोने की धात की,
पैड़ी-पैड़ी सुंदर सीढ़ी उजले हाथी दाँत की।
इसके सतमहले कोठे पर सूयोरानी का घरबार,
सात-सात राजाओं का धन, जिनका रतन जड़ा गलहार।
महल कहाँ मेरे राजा का, तू सुन ले माँ कान में:
छत के पास जहाँ तुलसी का चौरा बना मकान में!
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मत बाँटो इंसान को | बाल कविता - विनय महाजन

मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर ने
बाँट लिया भगवान को।
धरती बाँटी, सागर बाँटा
मत बाँटो इंसान को॥
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चिट्ठी | बाल कविता - प्रकाश मनु

चिट्ठी में है मन का प्यार
चिट्ठी  है घर का अखबार
इस में सुख-दुख की हैं बातें
प्यार भरी इस में सौग़ातें
कितने दिन कितनी ही रातें
तय कर आई मीलों पार।

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