जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

राम, तुम्हारा नाम

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar

राम, तुम्हारा नाम कण्ठ में रहे, 
हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे, 
दुःख से त्राण नहीं माँगूँ।

माँगें केवल शक्ति दुःख सहने की, 
दुर्दिन को भी मान तुम्हारी दया 
अकातर ध्यानमग्न रहने की।

देख तुम्हारे मृत्यु-दूत को डरूँ नहीं, 
न्योछावर होने में दुविधा करूँ नहीं।

तुम चाहो, दूँ वही, 
कृपण हो प्राण नहीं माँगें।

- रामधारीसिंह दिनकर

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश