जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

प्रधान जी

 (विविध) 
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रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

अमरीका में एक कहावत प्रचलित थी लेकिन आजकल अनेक कारणों से इसका प्रयोग लगभग वर्जित ही है। कहावत थी-- ‘Too many chiefs and not enough Indians.’  इस कहावत का देसी अर्थ हुआ, ‘प्रधान सब हैं, काम करने को कोई तैयार नहीं।‘ इस कहावत का संबंध तो अमरीका के मूल निवासियों (रेड इंडियंस) पर आधारित है लेकिन ‘इंडियन’ तो इंडियन हैं, क्या लाल, क्या पीले!      

हमारे यहाँ भी तो प्रधान ही प्रधान होते हैं। गली में प्रधान, मोहल्ले में प्रधान, बस्ती में प्रधान, नगर में प्रधान, राज्य में प्रधान। आप कहीं की भी बात कीजिए, प्रधान जी ‘अत्र तत्र सर्वत्र’ विद्यमान हैं। ये देश-विदेश सब जगह उपस्थित हैं। हमें एक प्रधान जी ने सुझाया कि हम ‘प्रधान और प्रधानी’ पर शोध क्यों नहीं करते? प्रधान तो भारतीय समाज में बहुमत से हैं और ‘प्रधानी’ हमारी मूल सामाजिक आवश्यकता है, इसपर तो शोध बनता ही है।

हमें लगा, इससे पहले कि कोई और इस विषय पर अपनी प्रधानी ठोक दे, हमें कार्य आरंभ कर देना चाहिए। हमने इसपर शोध करना आरंभ कर दिया। अभी यह शोध संपूर्ण तो नहीं कहा जा सकता लेकिन प्रधान जी ने कहा है कि अभी तक जो किया है, उसे जारी कर दिया जाए। अब ‘प्रधान जी’ का कहा भला कौन मोड़ सकता है?

लीजिए, आप भी पढ़िए। यदि आपने भी इस विषय पर कुछ काम किया हो या आपके पास इसकी कोई अतिरिक्त जानकारी हो तो कृपया मुझे संपर्क करें।

प्रधान और प्रधानी की परिभाषा :  जो किसी भी क्षेत्र का मुखिया हो उसे ‘प्रधान’ कहा जाता है। वह जो क्रियाकलाप भी करे, उसे ही ‘प्रधानी’ समझना चाहिए। प्रधान कई प्रकार के होते हैं, जैसे—

चयनित प्रधान : ये बाकायदा चयनित होकर आते हैं जैसे पंचायत का सरपंच ‘प्रधान जी’ हुआ। महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों में भी छात्र प्रधान हुआ करते हैं। संगठनों, समितियों और कमेटियों में भी प्रधान होते हैं। इनकी उत्पत्ति चुनावों से होती है और ये राजनीतिज्ञों के करीबी और उनकी पसंदीदा प्रजाति हैं। जमीन उर्वरक हो और राजनीतिक खाद-पानी मिलता रहे तो ये नेता का रूप धारण करने में भी देर नहीं लगाते।

स्वयंभू प्रधान : ये स्वयं ही अपने मनोरथवश स्वसम्मति से प्रगट हो जाते हैं। आपको इनकी जरूरत हो या न हो, ये अपनी जरूरत को देखते हुए आप पर थूप जाएंगे। इन्हें अन्य प्रधान प्रजातियाँ पसंद नहीं करती क्योंकि ये उनके लिए खतरा हो सकते हैं लेकिन इनपर नियंत्रण कर पाना असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य है।  

मौसमी प्रधान : ये प्रधान मौसम के अनुसार पैदा होते हैं और मौसम बीतते ही मौसमी फल-फूल-सब्जियों की तरह गायब हो जाते हैं। उदाहरण के लिए हिंदी में इनकी फसल सितंबर और जनवरी के महीने में खूब फैलती है। 14 सितंबर (हिंदी दिवस) और 10 जनवरी (विश्व हिंदी दिवस) को यह खूब लहलहाते हैं और इनमें से निकलने वाली एक विशेष स्नेह-ध्वनि विश्वभर में सुनी जा सकती है। कभी-कभी यह तीन-चार वर्ष के अंतराल के पश्चात देश-विदेश में ‘विश्व दंगल सम्मेलन’ के समय भी उपजते हैं। 

घुसपैठिए प्रधान : यह प्रजाति किसी भी आयोजन में घुसपैठ करके प्रधानी हासिल करने का प्रयास करती है। कुर्सी इनको बड़ी प्रिय है। कुर्सी कितनी भी दूर या ऊँची हो ये ‘लाँग जंप’ और ‘हाई जंप’ लगाकर उस तक पहुँचने की कोशिश करते रहते हैं। ‘ट्राइ ट्राइ अगेन’ के मूलमंत्र को अपना आदर्श मानकर ये कभी भी हार नहीं मानते और प्रधानी पाने के लिए आजीवन लाँगजंप-हाईजंप लगाते रहते हैं।

सदाबहार प्रधान : जैसा कि इनके नाम से ही परिभाषित होता है, ये सदाबहार प्रजाति है। ये खरपतवार की भांति उगते हैं। ये आपदा को अवसर बनाने में माहिर होते हैं। जन्म-मरण कोई भी अवसर हो, ये प्रधानी करते रहते हैं। ये मौसम को बेमौसम और बेमौसम को मौसम में तबदील करने की क्षमता रखते हैं। 

देश में उत्सव हो या समाज में कोई भी समस्या उभरे ये ‘भाषण’ देने लगते हैं। इन्हें लगता है कि हर समस्या का समाधान इनका ‘भाषण’ ही है।      

आभासी मंचीय प्रधान : इनकी उत्पत्ति यूं तो इंटरनेट के साथ ही आरंभ हो गई लेकिन इनका सर्वांगीण विकास ‘कोरोना काल’ में हुआ। यह प्रजाति ज़ूम, गूगलमीट इत्यादि पर खूब फलफूल रही है। कई इंटरनेट पंडितों ने भविष्यवाणी की है कि कोरोनाकाल बीत जाने पर भी इनकी प्रजाति सशक्त रूप से विश्वव्यापी रहेगी। ये छुट्टियों और सप्ताहांत में प्रगट होते रहेंगे। इस प्रधान प्रजाति की यह विशेषता है कि यह अमिट है। कोरोनाकाल में उत्त्पति के कारण संक्रमण इनमें स्वाभाविक रूप से पाया जाता है। एक प्रधान के संपर्क में आने वाला भी प्रधान बनने लगता है। इस् प्रकार एक प्रधान से अनगिनत प्रधान उपजने लगते हैं। हिंदी और साहित्य के क्षेत्र में इनका विकास नए कीर्तिमान स्थापित कर चुका है। ये एक ही समय में अनेक ऑनलाइन गोष्ठियों में पाए जाते हैं। एक जगह भाषण दे रहे होते हैं तो दूसरी जगह कविता पढ़ते दिखाई देंगे। अपनी बारी लेते ही एक स्थान से अंतर्धान होकर अन्य गोष्ठी में प्रगट हो जाते हैं।

निष्कर्ष : हालांकि प्रधान और प्रधानी विभिन्न प्रकार की होती है तथापि इनमें एक विशेष समानता है, सभी प्रकार के प्रधान साम-दाम-दंड-भेद किसी भी कीमत पर प्रधानी को वरीयता देते हैं और भाषण इनको प्रिय होता है। इन्हें अधिक बोलने वाले लोग बिलकुल पसंद नहीं होते, ये केवल सुनने वाले लोगों को पसंद करते हैं। हाँ में हाँ मिलाने वाले और पूंछधारी इनकी पहली पसंद होते हैं।

हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि प्रधान प्रजाति बड़ी तेजी से विकास कर रही है।  कई प्रधान इसे संकट का संकेत बता रहे हैं चूंकि सब प्रधान हो जाएंगे तो प्रधानी किसपर की जाएगी? इस विषय पर एक ऑनलाइन संगोष्ठी का प्रस्ताव पारित हुआ है लेकिन इसकी प्रधानी कौन करेगा, इसको लेकर कुछ संघर्ष की स्थिति बनी हुई है। कोई भी प्रधान पीछे हटने को तैयार नहीं है यानी--‘Too many chiefs and not enough Indians.’ मतलब तो इसका आपको बताया ही था!

-रोहित कुमार ‘हैप्पी’
 न्यूज़ीलैंड

 ई-मेल: editor@bharatdarshan.co.nz

[विश्व साहित्य पत्रिका 2023, मॉरीशस]

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