जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

इसलिए तारीख ने... | ग़ज़ल (काव्य)

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Author: भवानी शंकर

इसलिए तारीख ने हमको कभी चाहा नहीं,
हम अकेले हैं हमारे पास चौराहा नहीं।

चौखटों के पार चमड़े का भरा बाजार है,
और कानों में हमारे इत्र का फाहा नहीं।

तख़्त चेहरों का कभी पलटेगा तो बात और है,
अब तलक तो हमने अपनी रूह को ब्याहा नहीं।

आज चोली है कहीं पर और दामन है कहीं,
और इस संबंध को किस किसने निर्वाहा नहीं।

दोस्तो, तुमने बहुत चाहा मगर हम क्या करें,
ज़िन्दगी बाक़ायदा होती कभी स्वाहा नहीं।

-भवानी शंकर

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