बुलाओ मुझे
पुआल के बिछौने
सोना चाहूँ मैं।
स्वप्न-कटोरे
भरी भरी आँखों से
छलक गए।
काँटों का वन
कैसे पार करूँ मैं
फूलों सा मन।
जो चाहे कहो
हमें सुन लेने दो
रोम-रोम से।
अपना घर
धरती पर नहीं
कहाँ बसूँ मै।
-डॉ विद्या विंदु सिंह
कुछ हाइकु (काव्य) |
बुलाओ मुझे
पुआल के बिछौने
सोना चाहूँ मैं।
स्वप्न-कटोरे
भरी भरी आँखों से
छलक गए।
काँटों का वन
कैसे पार करूँ मैं
फूलों सा मन।
जो चाहे कहो
हमें सुन लेने दो
रोम-रोम से।
अपना घर
धरती पर नहीं
कहाँ बसूँ मै।
-डॉ विद्या विंदु सिंह