जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

सॉरी (कथा-कहानी)

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Author: महेश दर्पण

सड़क पर दो लोग आमने-सामने से आ रहे थे, लेकिन अपने आप में इस कदर मशगूल कि किसी दूसरे के बारे में सोचने की तो जैसे फुरसत ही न हो। एक अपने मोबाइल पर आया कोई एस.एम.एस. देखने में बिजी था तो दूसरा यह जानने की कोशिश में था कि आखिर अभी-अभी आया मिसकॉल है किसका। वे दोनों इस कदर करीब आ चुके थे कि किसी भी वक्त टकरा सकते थे। ठीक इसी वक्त पास से गुजरते एक बच्चे ने उन्हें देख लिया। उसके मुँह से निकल पड़ा, "अंकल, सामने तो देखिए!"

दोनों ने पास से आती आवाज की तरफ तो देखा, लेकिन सामने देखना वे भूल ही गए और आपस में टकराकर एक-दूसरे को सॉरी कहने लगे। बच्चा उन्हें ऐसा करते देख हँसने लगा।

-महेश दर्पण
[लघुकथा विशेषांक 2017, साहित्य अमृत]

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