खड़ी बोली को काव्य भाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने वाले कवियों में अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' का जन्म 15 अप्रैल, 1865 को हुआ था।
हिंदी के विकास में 'हरिऔध' के काव्य का महत्वपूर्ण योगदान है। आप कवि के अतिरिक्त नाटककार, उपन्यासकार, साहित्य-समीक्षक व इतिहास लेखक भी थे। वस्तुत: आप खड़ी बोली के प्रथम महाकवि थे।
एक बूँदज्यों निकल कर बादलों की गोद सेथी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी।सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी ?देव मेरे भाग्य में क्या है बदा,मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ?या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,चू पडूँगी या कमल के फूल में ?बह गयी उस काल एक ऐसी हवावह समुन्दर ओर आई अनमनी।एक सुन्दर सीप का मुँह था खुलावह उसी में जा पड़ी मोती बनी ।लोग यों ही हैं झिझकते, सोचतेजबकि उनको छोड़ना पड़ता है घरकिन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हेंबूँद लौं कुछ और ही देता है कर ।- अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध